मानसिक रूप से कमज़ोर बालकों की शिक्षा Education of Mentally Retarded Children

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Tue, 14 Sep 2021 06:34 PM IST

 मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए देश में बहुत ही कम संस्थाएं है। इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा का उत्तरदायित्व इनके परिवार पर भी होती है इसके अंतर्गत निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -

Source: Patrika



1) सर्वप्रथम तो बालक के मंद बुद्धि होने की आशंका होते ही उसका पूर्णत: परीक्षण करवा लेना चाहिए। चिकित्सक के अलावा किसी कुशल मनोचिकित्सक अथवा प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता को भी दिखाना चाहिए। माता - पिता द्वारा विशेषज्ञों को उससे संबंधित सही - सही बात बता देनी चाहिए। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

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2) घर का वातावरण बालक के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है। ऐसे बालकों के माता पिता को बालक के साथ व्यवहार में कई बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए । जैसे मंद बुद्धि बालकों के साथ व्यवहार करने में इस बात का ध्यान रखना होगा कि बालक उन पर विश्वास कर सके ।  ऐसा करने से वह स्वयं को वातावरण का अंग समझता है ।

3) ऐसे बालकों की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है दिनचर्या का प्रशिक्षण देना। इसके लिए बालक के अभिभावकों को सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना चाहिए एवं किसी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए वरन धैर्य से काम लेना चाहिए। क्यों कि ऐसे बालकों में सीखने की क्षमता सामान्य बालकों की अपेक्षा कम होती है और यह किसी भी कार्य को सीखने में अधिक समय लेते है ।

4) माता पिता को एक अन्य बात का ध्यान रखना चाहिए कि जहा पर भी वह कोई गलती करे तो उसे यह बताया जाये कि उचित क्या है । बताना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उस स्थिति में ठीक बात न केवल करके दिखाई जाये बल्कि उससे करवाई भी जाए।
 
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5) कई बार बालक खिलौनों की बजाय कुछ और वस्तुओं में रुचि लेते हैं इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। 

6) मंद बुद्धि बालक की श्रवणशक्ति , उच्चारण शक्ति एवं दूसरो के प्रति व्यवहार की ओर भी ध्यान देना चाहिए । छोटे बड़े खेल जो कमरे में खेले जा सकते है  उनके द्वारा ही बच्चे को ज्ञानवान बनाया जा सकता है। ये खेल न केवल उसकी रुचि को जागृत करते है परंतु उसे भावी जीवन के लिए तैयार करते है। 

7) वस्तुओं को आपस में जोड़ना , उसकी अलग -अलग ढेरियां बनाना, छोटी - छोटी पहेलियां हल करना अथवा अपनी छोटी - छोटी कहानियां बनाना आदि बालक की कल्पनाशक्ति  के लिए लाभदायक होगा।

8) मंद बुद्धि बालकों को सीखने के लिए जो वस्तुएं दी जाएं वे रंगीन व आकर्षक होनी चाहिए इससे वे आकर्षित होंगे एवं रुचि जागृत होगी।

9) मंद बुद्धि बालक को अच्छी आदतें सीखने में भी बड़े धैर्य से काम लेना चाहिए । पहले तो यह प्रयत्न रहना चाहिए कि वह कम से कम बुरी आदतें तो नहीं सीखे। उनमें समझ की कमी होती है। इसलिए उन्हें बुरे रास्ते एवं कुप्रभाव से बचाने के लिए  विशेष ध्यान रखना चाहिए।

10) मंद बुद्धि बच्चे हाथ का काम करके प्रसन्न होते है क्यों कि उनका मन ऐसे कामों में अधिक लगता है जिनमें दिमाग काम लगे और अधिक काम हाथ से करना पड़े। इसलिए उन्हें इस प्रकार के कार्य करने के लिए देने चाहिए।

11) मंद बुद्धि बालक दुहराने वाले कार्य जल्दी सीख लेते है। करत करत अभ्यास जड़मति होत  सुजान की उक्ति इन बालकों की शिक्षा में बिल्कुल खरी उतरती है। माता पिता एवं अध्यापकों को इस तथ्य का लाभ उनकी शिक्षा में उठाना चाहिए।

12) मंद बुद्धि बालक के लिए नया पाठ्यक्रम न बनाया जाए बल्कि सामान्य पाठ्यक्रम को सरल करके या उसका कुछ भाग काटकर बच्चे के सामने रखा जाए। इसके बाद धीरे - धीरे प्रयोग करके देखा जाए कि किस - किस बात को बच्चा जल्दी सीख सकता है। और किसको देरी से।

13) मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा में तस्वीरों का अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए । सीखने के लिए खुला समय मिलना चाहिए।

14) मंद बुद्धि बच्चे शिक्षा में सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक समय लेते हैं इसलिए शिक्षक को स्वभाव से शांत एवं धैर्यवान रहना चाहिए ।

15)मंद बुद्धि बालकों को कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। चौदह वर्ष की आयु के बाद बच्चे को व्यवसाय की ट्रेनिंग दी जा सकती है जिससे कि भविष्य में वह कुछ कमाकर जीवन निर्वाह कर सके। 

इस प्रकार मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि बालक धीरे - धीरे अत्मनिर्भर बन सके जिससे कि वह परिवार एवं समाज पर बोझ ना बनकर समाज में सम्मानपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके ।
 

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