प्रत्येक बच्चों की सीखने की दर भिन्न भिन्न होती है। अलग अलग व्यक्तियों की पाठ्य वस्तु को अधिगम करने की समयावधि व्यैक्तिक विभिन्नता के विकास संबंधी सिद्धांत से है। सभी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के द्वारा यह निष्कर्ष निकलता है कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते है। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो अपनी तैयारी के लिए हमारे फ्री FREE CTET Paper 1 Ebook - Download NOW से जुड़ जाना चाहिए।
Source: NA
यहां तक कि कोई जुड़वा भाई बहनों में भी पूर्णतया समानता नहीं होती है। उनमें रंग, रूप, शारीरिक गठन, विशिष्ट योग्यताओं, बुद्धि, अभिरुचि, स्वभाव आदि के संदर्भ में एक दूसरे से कुछ ना कुछ भिन्नता अवश्य मिलेगी।
इसी तरह उनमें पायी जाने वाली इस भिन्नता को ही व्यक्तित्व भिन्नता कहा जाता है।
- UP TET Free Practice E-Book in Hindi
- UP TET Child Development and Pedagogy
- UP History PDF E-Book
- Uttar Pradesh General Knowledge Geography- Free E-Book
व्यक्तिगत विभिन्नता के संदर्भ में पाए जाने वाले विभिन्न पक्षों के संबंध में मनोवैज्ञानिक टायलर के शब्द स्पष्ट है -
मापित की जाने वाली विभिन्नताओं के अस्तित्व को शारीरिक आकर, आकृति, दैहिक कृत्य, गामक क्षमताओं, बुद्धि, निष्पति ज्ञान, रुचियों, अभिवृतियोँ एवं व्यक्तित्व के लक्षणों के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है।
स्किनर के अनुसार- व्यक्तिगत विभिन्नताओं में सम्पूर्ण व्यक्तित्व का कोई भी ऐसा पक्ष सम्मिलित हो सकता है, जिसे मापन किए जा सके।
परिणामतः औसत समूह से मानसिक, शारीरिक विशेषताओं के संदर्भ में समूह के सदस्य के रूप में भिन्नता या अंतर को 'व्यक्तिगत भेद' कहा जाता है। बालको को इन विभिनताओं के मुख्य कारकों को प्रेरणा, बुद्धि, परिपक्वता, पर्यावरण संबंधी विभिन्नताओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
FREE GK EBook- Download Now
व्यक्तिगत विभिन्नता के प्रकार–
सामान्यतः व्यक्तिगत भिन्नताएं दो प्रकार की मानी जाती है-
1. आंतरिक विभिन्नताएं - हर एक व्यक्ति अपने आप में भिन्नता लिए होता है। उसकी सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक एक जैसे स्तर की नहीं होती है।
कोई व्यक्ति स्मृति की दृष्टि से ठीक हो सकता है किंतु तर्क शक्ति में उतना अच्छा नहीं होता। वह चिंतनशील होने के साथ साथ सामाजिक भी हो सकता है।
2. बाह्य विभिन्नताएं - दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों और संरचना के संदर्भ में घटित विभिन्नताओं को बाह्य विभिन्नताओं के नाम से जाना जाता है।
व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण -
1. वंशानुक्रम: - व्यक्तिगत भिन्नताओं का प्रमुख कारण वंशानुक्रम है। वंशानुक्रम के इस कारण के प्रमुख रूसो, पीयरसन, टरमन, गालतन आदि है। इन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर दिया है कि, व्यक्त की शारीरिक और मानसिक विभिन्नता का विशिष्ट कारण वंशानुक्रम है।
एक संतति से दूसरी संतति में पैतृक गुणों के संक्रमण के फलस्वरूप ही प्राणी - प्राणी भिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
यही कारण है कि स्वास्थ्य और बुद्धिमान माता पिता की संतान भी अधिक स्वास्थ् और बुद्धिमान होती है।
2. शारीरिक विकास:- विभिन्न व्यक्तियों में लम्बाई, भार, शारीरिक संरचना, तथा विभिन्न शारीरिक अंगों की विकास की गति और मात्रा में व्यक्तिगत विभिन्नता के कारण अंतर देखा जा सकता है।
3. आयु सामान्यतः- आयु प्रत्येक बालक की बुद्धि, योग्यता शारीरिक सामर्थ्य तथा परिपक्वता आदि में अंतर उत्पन्न कर देती है।
4. स्वभाव:- चिकित्साशास्त्रीयों ने स्वभाव के कारण मनुष्य में अंतर माना है। जैसे कोई व्यक्ति स्वभाव से तेज होता है और कोई सुस्त। कोई क्रियाशील होता है तो कोई निष्क्रिय।
5. संवेगात्मक स्थिरता:- अनेक शारीरिक, मानसिक और परिवेश जनित कारकों के कारण भिन्न भिन्न व्यक्तियों की संवेगात्मक स्थिरता में अंतर होता है और इससे व्यक्तियों के स्वभाव में अंतर बढ़ जाता है।
6.सीखने से संबंधित अंतर:- भिन्न भिन्न व्यक्तियों में सीखने की योग्यता, उसके प्रति अभिवृति तत्परता गति और संक्रमण के कारण अंतर लाया जाता है।
भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में अधिक जानने के लिए- Download the Free- Book here.
7. लिंग भेद:- यधपि आधुनिक मनोवैज्ञानिक केवल लिंग भेद को लड़के - लड़कियों में अंतर का कारण नही मानते तो भी निसंदेह लिंग भेद से व्यक्तियों में अंतर देखा जा सकता है।
8. वातावरण :- व्यक्तिगत अंतर में वातावरण का प्रभाव, आनुवांशिकता से किसी प्रकार भी कम नहीं है। बालक के वातावरण में क्रमशः परिवर्तन से उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन देखा जा सकता है।
9.अन्य कारण:- उपर्युक्त कारणों के अलावा अनेक कारण व्यक्तियों में अंतर उत्पन्न करते है। जैसे रुचियां, अभिवृतियां, व्यक्तित्व के विभिन्न स्थायी भाव तथा सामूहिक परिस्तिथियां इत्यादि।
बालको के व्यक्तिगत भेदों के शिक्षा में अत्याधिक महत्व है। शिक्षा का लक्ष्य बालकों का सर्वांगीण विकास करना है।व्यक्तिगत भेद होने से बालक का विकास एक सी विधियों से न करके अलग अलग विधियां प्रयोग में लायी जाती है।
अतः शिक्षकों को बालकों के व्यक्तिगत अंतर को ध्यान में रखते हुए शिक्षा का प्रबंध करना चाहिए।
अधिगम के लिए आकलन और अधिगम का आकलन में अंतर, शाला आधारित आकलन, सतत एवं समग्र मूल्यांकन-
अधिगम की प्रक्रिया में कोई एक लक्ष्य तथा उस लक्ष्य तक पहुंचने में बाधा दोनो ही उपस्थित रहते है। सीखना सदैव अर्थपूर्ण होता है।
• बालक के सामने जब कोई अर्थपूर्ण लक्ष्य होता है तो, उसकी प्राप्ति के लिए अभिप्रेरणा आवश्यक होता है। लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में उपस्थित अवरोधक को दूर करने के लिए वह अनेक प्रकार की अनुक्रियाएं करते हैं। किंतु उसमे जो क्रिया उपर्युक्त होती है। उसके द्वारा वह बाधाओं को पार करके लक्ष्य तक पहुंचता है। इस उपर्युक्त क्रिया को वह चयन कर लेता है और बार बार इसको प्रयास करके वह प्राप्त कर लेता है।
• मूल्यांकन से छात्र के ज्ञान की सीमा का निर्धारण के साथ साथ उनकी रुचियों, कार्य क्षमताओं, व्यक्तित्व व्यवहारों, आदतों तथा बुद्धि आदि की प्रगति को आंक कर गुणात्मक निर्णय करता है।
• शिक्षा मनोविज्ञान व्यवहारगत परिवर्तनों, शैक्षिक उपलब्धियों, छात्र वर्गीकरण, भावी संभावनाओं तथा भविष्यवाणी करने के लिए अनेकानेक मापन एवं मूल्यांकन प्रविधियों एवं सांख्यिकी विधियों का प्रयोग तथा अध्धयन करता है।
• शिक्षा मनोविज्ञान इसके अलावा बुद्धि,निष्पति, अभिरुचि आदि की माप भी करता है।