वैसे तो जबसे पृथ्वी का निर्माण हुआ है तब से लेकर लगातार उसकी संरचना में परिवर्तन होता आ रहा है, परन्तु अभी हाल हीं में एक रिसर्च में एक ऐसी बात सामने आई है जिसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है. इससे यह अंदेशा जताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में हिमालय समेत दुनिया के उत्तरी हिस्सों में भीषण भूकम्प आ सकते हैं. इतना हीं नहीं नए रिसर्च से यह भी पता चला है कि भारत, यूरोप की तरफ खिसक रहा है. आइए जानते हैं कि इन्डियन प्लेट्स क्या है ? यह इतनी खतरनाक क्यों है ? धरती पर हो रहे इस परिवर्तन का कारण क्या है और ये भूकम्प आते कैसे हैं ?
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Source: Safalta.com
इन्डियन प्लेट्स क्या है ? यह इतनी खतरनाक क्यों है ?
भारतीय प्लेट या इंडियन प्लेट ईस्टर्न हेमिस्फीयर (Eastern Hemisphere) में भूमध्य रेखा पर फैली एक छोटी टेक्टोनिक प्लेट है. हाल में ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिकों ने धरती पर मौजूद सभी टेक्टोनिक प्लेट्स का एक नया नक्शा तैयार किया है. इसमें पता चला है कि भारत के नीचे मौजूद इन्डियन प्लेट्स तेज़ी से उत्तरी दिशा में मौजूद युरेशिआई प्लेट्स की ओर खिसक रही है, इससे अंदेशा जताया जा रहा कि आने वाले दिनों में इन दो प्लेटों में टकराव से हिमालय समेत उत्तरी हिस्सों में भीषण भूकम्प आ सकता है.
भूकम्प आते कैसे हैं ?
दुनिया भर में आने वाले भूकम्पों के लिए जमीन की सतह के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेटों को जिम्मेदार बताया जाता है. ये प्लेट्स जब एक दूसरे से टकरातीं हैं तो इससे भूकम्प के झटके महसूस होते हैं. कई बार तो इनके टकराने से सुनामी जैसे हालात भी पैदा हो जाते हैं. प्लेट टैक्टोनिक सिद्धांत के अनुसार धरती की परत कई प्लेट्स के रूप में विभाजित है. इस सिद्धांत के अनुसार भूगर्भ में उत्पन्न उष्ण संवहनीय धाराओं के प्रभाव के अंतर्गत महाद्वीप या महासागरीय प्लेट्स विभिन्न दिशाओं में विस्थापित होती रहती हैं. समय के साथ साथ जमीन के भीतर मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स खिसकती रहतीं हैं, जिससे धरती के उपरी परत में भी बदलाव हो रहे हैं. टेक्टोनिक प्लेट्स के खिसकने पर सैटेलाईट से निगाहें रखी जाती हैं. अभी हाल हीं में इन बदलावों के बारे में स्टडी कर रहे वैज्ञानिकों ने एक नया मैप जारी किया है.
टेक्टोनिक प्लेट्स
आज से कुछ करोड़ साल पहले सातों महाद्वीप एक हीं द्वीप का हिस्सा थे. 30 करोड़ साल पहले दुनिया के सभी देश और महाद्वीप एक हीं जमीन के टुकड़े का हिस्सा थे लेकिन वक्त के साथ इनमें दूरियाँ बनती गयी और ये दूरियाँ आज भी बनतीं जा रहीं हैं. इन दूरियों के बढ़ने ने समुद्र की जगह पर दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड़ यानि कि हिमालय को जन्म दिया. प्लेट टेक्टोनिक थ्योरी का कहना है कि पूरी पृथ्वी पर जमीन है कहीं ये जमीन ऊँची है कहीं नीची. नीची जमीन पर जहाँ पानी भर गया है वहाँ समुद्र बन गए हैं. अगर धरती से समुद्रों को हटा कर देखा जाए तो पूरी पृथ्वी कुछ प्लेट्स में बंटी है, इन प्लेट्स को टेक्टोनिक प्लेट्स कहते हैं. ये वही प्लेट्स हैं जिनमें हलचल होने से भूकम्प आ जाता है.
पृथ्वी पर था जमीन का एक हीं टुकड़ा
प्लेट टेक्टोनिक थ्योरी के बाद यूएस जियोग्राफिकल सर्वे ने अपनी रिसर्च निकाली. इस रिसर्च में यह बताया गया है कि 33 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर जमीन का एक हीं टुकड़ा था जिसका नाम था पैन्जिया. 17 करोड़ साल पहले पैन्जिया में भूमि हलचल होती रही लेकिन ये एक हीं बना रहा. 17 करोड़ साल बाद पैन्जिया दो टुकड़ों में टूट गया. इन टुकड़ों का नाम बना लौराशिया और गोंडवाना लैंड. गोंडवाना लैंड के अस्तित्व की परिकल्पना सर्वप्रथम मध्य 1800 में एडुअर्ड स्वेज़ द्वारा की गयी थी. 1912 में जर्मन भूवैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर ने कॉन्टिनेंटल ड्रिफ्ट की थ्योरी दी थी. उन्हें भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में एक जैसे जीवाश्म मिले थे.
इन्डियन प्लेट और खतरा
शोधकर्ताओं और भूकंप विज्ञानियों की एक टीम ने पाया है कि पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मा रेंज (आईबीआर) में इन्डियन प्लेट के उत्तर पूर्वी किनारे के जटिल टेक्टोनिक्स प्लेट्स भविष्य में भूकंप का खतरा उत्पन्न कर सकते हैं. उन्होंने इन प्लेटों के बीच परस्पर क्रिया का अध्ययन करके सन 1950 में असम में आए भीषण भूकंप का पता भी लगाया. 1950 में असम में आए भीषण भूकंप के बाद, ऊपरी असम और मिश्मी ब्लॉक के बीच के क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है और इसे भूकंपीय अंतराल क्षेत्र माना जाता है.
फिर आ सकता है भीषण भूकम्प
टेक्टोनोफिजिक्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि यह भूकंपीय संरचना जटिल टेक्टोनिक्स बनाती है जो 1950 में असम में भीषण भूकंप का कारण बना था. असम का यह भीषण भूकंप 8.6 तीव्रता वाला भूकम्प था जो कि अब तक का सबसे बड़ा अंतर-महाद्वीपीय भूकंप है. जिसका केंद्र अरुणाचल हिमालय की मिशमी पहाड़ियों के पास भारत-चीन सीमा पर स्थित था.