Dr. B.R Ambedkar Biography : डॉ भीमराव अंबेडकर जिन्हें लोग बाबासाहेब के नाम से जानते हैं भीमराव अंबेडकर उनमें से एक हैं, जिन्होंने भारत के संविधान को बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान एवं भूमिका निभाई है। अंबेडकर जी इतिहास में जाने-माने राजनेता एवं प्रख्यात विधिवेत्ता थे इन्होंने देश में छुआछूत जातिवाद को मिटाने के लिए बहुत से आंदोलन चलाए, उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों के ऊपर समर्पित कर दिया। दलित व पिछड़ी जाति के हक के लिए इन्होंने बहुत मेहनत की इनके ही चलते आरक्षण आया, जैसे पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे आने का अवसर मिला। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के कैबिनेट में पहली बार अंबेडकर जी को लॉ मिनिस्टर बनाया गया था। अपने अच्छे कार्य एवं देश के विकास के लिए बहुत कुछ करने के लिए अंबेडकर जी को साल 1990 में देश के सबसे बड़े सम्मान यानी भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। आइए जानते हैं भीमराव अंबेडकर के जीवन परिचय के बारे में विस्तार से। अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now. / सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इस ऐप से करें फ्री में प्रिपरेशन - Safalta Application
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डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जन्म परिवार एवं विवाह के बारे में
भीमराव अंबेडकर अपने माता पिता के 14वीं संतान थे इनके पिता इंडियन आर्मी में सूबेदार थे, उनकी पोस्टिंग इंदौर के महू में हुई थी और अंबेडकर जी का जन्म भी यहीं हुआ था। 1894 में रिटायरमेंट के बाद अंबेडकर जी का पूरा परिवार महाराष्ट्र के सतारा में शिफ्ट हुआ, कुछ दिनों बाद इनकी मां की मृत्यु हो गई। जिसके बाद इनके पिता ने दूसरी विवाह की और मुंबई शिफ्ट हो गए 15 साल की उम्र में अंबेडकर का विवाह 9 साल की रमा बाई से हुआ।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जाति भेद एवं आरंभिक जीवन के बारे में
बचपन से भीमराव अंबेडकर ने छुआछूत देखा था वह हिंदू मेहर कास्ट के थे, जिन्हें नीची जाति का समझा जाता था वह ऊंची कास्ट के लोग उन्हें आपने से नीची जाती का समझते थे, यही कारण था कि अंबेडकर जी को समाज में कई जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा, इन्हें भेदभाव के चलते अपने जीवन में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। आर्मी स्कूल जहां यह पढ़ा करते थे वहां भी इन्हें छुआछूत के भेदभाव से गुजरना पड़ा, उनकी कक्षा के बच्चे उन्हें उनके जाति के चलते अंदर बैठने नहीं दिया करते थे, शिक्षक भी उनके ऊपर ध्यान नहीं दिया करते थे, उन्हें पानी को छूने की भी इजाजत नहीं थी, स्कूल के चपरासी उन्हें ऊपर से पानी डालकर देते थे, जिस दिन नहीं आते थे उन्हें उस दिन पानी तक नहीं मिलता था।
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भीमराव अंबेडकर के शिक्षा के बारे में
भीमराव अंबेडकर का परिवार मुंबई शिफ्ट हुआ तब भीमराव अंबेडकर की शादी 15 साल की उम्र में हुई थी, जिसके बाद उन्होंने 12वीं की परीक्षा पास की, स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद अंबेडकर जी आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज जाने का अवसर मिला पढ़ाई में बहुत अच्छे एवं तेज बुद्धि के थे यह अपने सभी एग्जाम अच्छे अंक से पास करते थे इसलिए इन्हें बरोदा के गायकवाड के राजा सहयाजी से ₹25 की स्कॉलरशिप हर महीने मिलती थी। इन्होंने राजनीति विज्ञान एवं अर्थशास्त्र में 1912 में ग्रेजुएशन पूरा किया इन्होंने अपने स्कॉलरशिप के पैसे आगे की पढ़ाई में लगाने के बारे में सोची, जिसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गए।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के करियर के बारे में
अमेरिका से पढ़ाई करके लौटने के बाद बरोदा के राजा ने उन्हें अपने यहां राज्यमंत्री में अपने राज्य में रक्षा मंत्री बना दिया लेकिन छुआछूत के चलते इतने बड़े पद में होने के बावजूद भी उन्हें निरादर का सामना करना पड़ता था। मुंबई गवर्नर की सहायता से वह मुंबई के सिंड्रोम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीति अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने, इसके बाद अंबेडकर ने आगे की पढ़ाई करने के बाद बारे में विचार किया जिसके बाद वे एक बार फिर से भारत से बाहर इंग्लैंड गए इसके बाद उन्होंने अपने खर्चों का भार खुद उठा लिया, यहां लंदन यूनिवर्सिटी ने उन्हें डीएससी के अवार्ड से सम्मानित किया। अंबेडकर जी कुछ समय जर्मनी के बोन यूनिवर्सिटी में भी समय गुजारा यहां उन्होंने इकोनॉमिक्स में अधिक अध्ययन करने का अवसर मिला। 8 जून 1927 को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। GK Capsule Free pdf - Download here
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के दलित आंदोलन के बारे में
भारत लौटने के बाद अंबेडकर जी ने छुआछूत एवं जातिवाद के खिलाफ मोर्चा शुरू किया, अंबेडकर जी ने कहा कि नीची जाति एवं जनजाति और दलित के लिए देश में अलग से एक चुनाव प्रणाली होनी चाहिए, इनका मनना था कि उन्हें भी सामान्य लोगों की तरह पूरा हक मिलना चाहिए, विदेश के चुनाव में अंबेडकर जी ने इनके रिजर्वेशन की बात रखी अंबेडकर जी देश के कई हिस्सों में गए जहां वे लोगों को समझाया कि अपनी पुरानी प्रचलित प्रथा है वह सामाजिक बुराई है उसे जड़ से उखाड़ कर फेंकना चाहिए। भीमराव अंबेडकर ने एक न्यूज़पेपर मूक्नायका (लीडर ऑफ साइलेंट) शुरू किया। एक बार उनकी रैली में उनके भाषण को सुनने के बाद कोल्हापुर के शासक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद पूरे देश में हल्ला हो गया था जिसके बाद देश की राजनीति में एक नई मोड़।
भीमराव अंबेडकर के राजनैतिक सफर के बारे में
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने स्वतंत्रता मजदूर पार्टी का गठन किया, विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 15 सीट से जीत मिली अंबेडकर जी अपनी इस पार्टी को ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट पार्टी में बदल दिया। पार्टी के साथ विधान संविधान सभा के चुनाव में खड़े हुए लेकिन चुनीव में इस पार्टी का बहुत ही खराब प्रदर्शन दिया था, जिससे सब लोग उन्हें हरिजन बोला करते थे लेकिन अंबेडकर जी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई और उन्होंने उस बात का विरोध किया, उनका कहना था कि अछूत लोग भी समाज के एक हिस्सा हैं बाकी लोगों की तरह सामान्य इंसान है। अंबेडकर जी के रक्षा सलाहकार कमेटी में रखा गया व वाइसराय एग्जीक्यूटिव काउंसिल में उन्हें लेबर का मंत्री बनाया गया। वे आजाद भारत के पहले दलित होने के बावजूद भी उन्हें मंत्री बनने का अवसर मिला जो कि एक बहुत बड़ी उपाधि थी।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा संविधान का गठन
भीमराव अंबेडकर को संविधान कमेटी का चेयरमैन बनाया गया उनके एवं प्रख्यात विधिवेत्ता भी कहा जाता है। अंबेडकर जी ने देश के विभिन्न जातियों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए एक पुलिया का काम किया था, वह सब के समान अधिकार की बात पर जोर दिए। अंबेडकर के मुताबिक देश के अलग-अलग जाति एक दूसरे से लड़ाई खत्म नहीं करेंगे तो कभी भी देश एकजुट होकर सामने नहीं आएगा।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का बौद्ध धर्म में रूपांतर करना
साल 1950 में अंबेडकर जी ने एक सम्मेलन को अटेंड करने के लिए श्री लंका गए, वहां जाकर उनका जीवन बदला वे बौध धर्म से अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने फिर अपना धर्म रूपांतरण किया, धर्म रूपांतरण करने के बाद उन्होंने बौध धर्म के बारे में किताब लिखी वह अपने आप को इस धर्म में बदल लिया, अपने भाषण में अंबेडकर जी ने हिंदू रीति रिवाज व जाति विभाजन की घोर निंदा की। 1955 में उन्हें भारतीय बौद्ध महासभा का गठन किया, उनकी बुक द बुद्धा व उनका धर्म का विभाजन उनके मरणोपरांत हुआ था।
14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर जी एक आम सभा का आयोजन किया, जहां उन्होंने अपने 5 लाख सपोर्टर का बौद्ध धर्म में परिवर्तन करवाया था। अंबेडकर जी काठमांडू में आयोजित चौथी वर्ल्ड बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस को अटेंड करने गए 2 दिसंबर 1956 में उन्होंने अपनी पुस्तक द बुद्धा और कार्ल मार्क्स का हस्तलिपिक पूरा किया।
भीमराव अंबेडकर की मृत्यु के बारे में
अंबेडकर जी अपनी सेहत से बहुत परेशान थे उन्हें शुगर, आंखों में धुंधलापन एवं और अन्य कई तरह की बीमारियां होने लगी थी। 6 दिसंबर 1956 को अपने दिल्ली के घर में अंतिम सांस ली। उन्होंने बैद्ध धर्म को अपनाया था इसलिए उनका अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के रीति रिवाज के मुताबिक हुआ था।
भीमराव अंबेडकर को दिए गए सम्मान एवं पुरस्कार
- बाबासाहेब आंबेडकर को उनके महान कार्य के चलते कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है आइए जानते हैं इनके बारे में-
- भीमराव अंबेडकर जी की स्मारक दिल्ली स्थित उनके घर 26 अलीपुर रोड में स्थापित की गई है।
- अंबेडकर जयंती के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
- 1990 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
- सार्वजनिक स्थानों का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है जैसे हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में डॉक्टर अंबेडकर मुक्त विश्वविद्यालय, बी. आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर।
- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नागपुर में है जो कि पहले सोनेगांव हवाई अड्डा के नाम से जाना जाता था। अंबेडकर का एक बड़ा अधिकारिक चित्र भारतीय संसद भवन में प्रदर्शित किया गया है।
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