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मुस्लिम लीग का गठन – (Formation of Muslim League)
30 दिसंबर, 1906 को, ढाका के नवाब आगा खान और नवाब ख्वाजा सलीमउल्लाह के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए मुस्लिम लीग का गठन किया गया था. प्रारंभ में इसे अंग्रेजों का बहुत समर्थन मिला था लेकिन जब मुस्लिम लीग ने स्व-शासन की नीति को अपनाने की बात कही तो उन्हें अंग्रेजों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ. 1908 में अमृतसर में मुस्लिम लीग का एक अधिवेशन आयोजित किया गया था. इस अमृतसर अधिवेशन में सर सैयद अली इमाम की अध्यक्षता में मुसलमानों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल की मांग की गई थी. इस माँग को अंग्रेजों द्वारा मॉर्ले-मिंटो सुधार 1909 के अंतर्गत स्वीकार कर लिया गया था.सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए हिस्ट्री ई बुक- Download Now
मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य कौन थे ?
- मुहम्मद अली जिन्ना
- आगा खान III
- ख्वाजा सलीमुल्लाह
- वकार-उल-मुल्की
- हकीम अजमल खान
ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के सदस्य-
जिन्ना के नेतृत्व में, ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की सदस्यता दो मिलियन से भी अधिक हो गई थी और इसका दृष्टिकोण बहुत अधिक धार्मिक और यहां तक कि अलगाववादी भी बन गया था.
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मुस्लिम लीग की स्थापना को बढ़ावा देने वाले कारक –
ब्रिटिशों की योजना - अँगरेज़ भारतीयों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करना चाहते थे और भारतीय राजनीति में अलगाववादी रवैये का पालन करते थे. उदाहरण के लिए- पृथक निर्वाचक मंडल, गैर-ब्राह्मणों और ब्राह्मणों के बीच जाति का राजनैतिक खेल.
शिक्षा की कमी - मुसलमान पश्चिमी और तकनीकी शिक्षा से अनभिज्ञ थे.
मुसलमानों द्वारा संप्रभुता का नुकसान- 1857 के विद्रोह ने अंग्रेजों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मुसलमान उनकी औपनिवेशिक नीति के लिए खतरनाक हैं. क्यूँकि अंग्रेजों ने मुगल शासन को उखाड़ फेंकने के बाद अपना शासन स्थापित किया था.
मुस्लिम लीग के गठन का उद्देश्य –
मुस्लिम लीग के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन निम्नलिखित है-
(i) ब्रिटिश सरकार के प्रति भारतीय मुसलमानों में वफादारी की भावना को बढ़ावा देना.
(ii) मुसलमानों के राजनीतिक और अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें नरम और उदार भाषा में सरकार के सामने पेश करना.
(iii) लीग के उद्देश्यों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना मुसलमानों और भारत के अन्य समुदायों के बीच मैत्रीपूर्ण भावनाओं को बढ़ावा देना.
बाद में मुहम्मद अली जिन्ना तथा ‘मुस्लिम लीग’ ने ब्रिटिश भारत को हिन्दू व मुस्लिम राष्ट्रों में विभाजित करने की माँग वाले आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 ई. में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई. इसी साल इसका नाम बदलकर ‘ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ कर दिया गया, लेकिन पाकिस्तान में आधुनिक राजनीतिक दल के रूप में लीग उतने कारगर ढंग से काम नहीं कर सकी, जैसा यह ब्रिटिश भारत में जनआधारित दबाव गुट के रूप में काम करती थी और इस तरह से धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता व संगठन की क्षमता घटती चली गई.
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