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Table of Contents
1.1 गाँधीजी की 11 सूत्री मांगें
1.2 गांधी-इरविन समझौते की विशेषताएं
1.3 गांधी इरविन समझौते का परिणाम
1.4 गांधी-इरविन समझौता
सन 1930 में लन्दन में जब पहला गोलमेज़ सम्मलेन हुआ था तो उसमें जाने से गाँधी जी ने मना कर दिया था. गाँधी जी तब भारत के ऐसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे, जिनकी हर बात जनता मानती थी. सो गाँधी जी के सम्मलेन में शामिल नहीं होने से ''पहले गोलमेज़ सम्मलेन'' का कोई परिणाम नहीं निकला. ऐसे में जब 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मलेन की बात सोची गयी, तो जाहिर है कि अंग्रेज़ अधिकारी चाहते थे कि गाँधीजी इसमें भाग लें. लेकिन सन 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गाँधी जी की अध्यक्षता में नमक सत्याग्रह शुरू कर दिया था.
12 मार्च सन 1930 को दांडी मार्च के साथ नमक सत्याग्रह शुरू हुआ था. दरअसल गाँधी जी ने तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन को एक चिट्ठी लिखी थी और उनके सामने अपनी 11 सूत्री मांगेंरखी थीं, इसके साथ हीं उन्होंने अन्यायपूर्ण नमक कानून को तोड़ने की बात भी कही थी. दिल्ली मेनिफेस्टो में महात्मा गांधी द्वारा रखी गई मांगों की अस्वीकृति के कारण लाहौर कांग्रेस अधिवेशन हुआ. बाद में, सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत, महात्मा गांधी ने अपनी 11 मांगों को
अंग्रेजों के सामने रखा और 31 जनवरी, 1930 को स्वीकार या अस्वीकार करने का अल्टीमेटम दिया.
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गाँधी जी ने लार्ड इरविन के सामने जो 11 सूत्री मांगें रखी थीं वह निम्नलिखित हैं -
गाँधीजी की 11 सूत्री मांगें -
1) पूर्णरूपेण मदिरा निषेध.
2) विनिमय की दर घटा दी जाए.
3) भूमि लगान आधा हो और उस पर काउंसिल का नियोजन रहे.
4) नमक कर को समाप्त कर दिया जाए.
5) सेना सम्बन्धी व्यय में कम-से-कम 50% की कटौती की जाए.
6) बड़ी सरकारी नौकरियों का वेतन आधा कर दिया जाए.
7) विदेशी वस्त्रों के आयात पर निषेध कर लगे.
8) भारतीय समुद्र तट केवल भारतीय जहाज़ों के लिए सुरक्षित रहे और इसके लिए कानून का निर्माण हो.
9) सभी राजनीतिक बंदियों को छोड़ दिया जाए, राजनीतिक मामले बंद कर दिए जाए तथा निर्वासित भारतीयों को देश वापस आने की अनुमति दी जाए.
10) गुप्तचर पुलिस या तो हटा दिए जाए अथवा उस पर जनता का नियंत्रण रहे.
11) आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने की अनुमति दी जाए.
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गाँधीजी की इन मांगों पर इरविन ने कोई ध्यान नहीं दिया. जिसके बाद गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का निश्चय किया. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च के नमक सत्याग्रह से हुयी. इसकी वजह से गाँधी जी समेत बहुत से लोगों को जेल हो गयी, यह एक अहिंसात्मक सत्याग्रह आन्दोलन था. बावजूद इस सत्याग्रह की वजह से गाँधी जी समेत कई अन्य नेताओं और हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया, लेकिन तब तक यह नमक सत्याग्रह आन्दोलन भारत की जनता के बीच बहुत हीं लोकप्रिय हो चुका था. इस घटना का पूरी दुनिया में व्यापक रूप से प्रचार प्रसार हुआ और सबकी नज़रें भारत और गाँधी जी पर टिक गईं. गाँधीजी तथा भारतीयों की अन्यायी अंग्रेजों के साथ अहिंसात्मक लड़ाई ने लोगों के मन में भारतीयों के प्रति सहानुभूति जागृत कर दी और अंग्रेजों के लिए हर तरफ एक बुरा नजरिया बन गया. भारतीयों के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार के लिए अंग्रेजों की खूब आलोचना की गई.
इरविन (उस समय के वाइसराय) चाहते थे कि ये सब यानि ब्रिटिश सरकार की भर्त्सना और नमक सत्याग्रह किसी तरह से ख़त्म हो जाए. इसलिए उन्होंने गांधी जी की बिना शर्त रिहाई का आदेश दिया. और इसलिए, गांधी को जनवरी 1931 को जेल से रिहा कर दिया गया. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल ने गांधी को लॉर्ड इरविन के साथ बातचीत करने के लिए अधिकृत किया जिसके बाद गाँधीजी वायसराय से मिलने के लिए तैयार हो गए.
इरविन ने गाँधीजी के साथ कई बार बातचीत की. दोनों के बीच कुल 8 बैठकें हुईं. इन्हीं बैठकों के बाद सरोजिनी नायडू ने उन दोनों को "दो महात्मा" कहा था. इन बैठकों के बाद उन्होंने जो समझौता किया, उसे हीं गाँधी-इरविन पैक्ट कहा जाता है. दूसरा गोलमेज सम्मेलन सन 1931 में सितंबर-दिसंबर के दौरान लंदन में आयोजित किया जाना था.
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इन बैठकों में दोनों पक्षों ने अपनी कुछ मांगें रखी थीं. गाँधीजी ने अपनी 11 सूत्री मांगों को दोहराया था और इरविन ने गाँधीजी से असहयोग आन्दोलन समाप्त करने, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार ना करने और लन्दन में दूसरे गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने को कहा था. साथ हीं गाँधीजी की मांगों में कुछ संशोधन करके उन्हें मान लिया था. इसके बाद गाँधीजी 1931 के दूसरे गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए लन्दन गए थे, जहाँ वह कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे.
गांधी-इरविन समझौते की विशेषताएं-
- *भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए सहमत हो.
- *कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन को रोक देगी.
- *कांग्रेस की गतिविधियों पर अंकुश लगाने वाले सभी अध्यादेशों को वापस लेना.
- *हिंसक अपराधों को छोड़कर सभी अभियोगों को वापस लेना.
- *सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों की रिहाई.
- *नमक कर को हटाना.
- *INC ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया जो 1931 में सितंबर-दिसंबर के दौरान आयोजित किया गया था.
- *सरकार सभी अध्यादेशों को वापस लेने पर सहमत हो गई थी.
- *यह हिंसा में शामिल लोगों को बचाने के लिए सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर सहमति बनी.
- *शराब और विदेशी कपड़े की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने पर सहमति बनी.
- *INC पर प्रतिबंध को रद्द करने पर सहमती बनी.
- *सत्याग्रहियों की जब्त की गई संपत्तियों को बहाल करने पर सहमति बनी.
- *समुद्र तटों के पास लोगों द्वारा नमक के संग्रह की अनुमति देने पर सहमति बनी.
- *सविनय अवज्ञा आंदोलन के मद्देनजर सेवा से इस्तीफा देने वाले सभी सरकारी कर्मचारियों के साथ उदार व्यवहार पर सहमति बनी.
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गांधी-इरविन समझौता - गांधी की वे मांगे जिन्हें इरविन द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था.
- *आंदोलन के दमन के दौरान पुलिस की ज्यादतियों की एक सार्वजनिक जांच हो.
- *भगत सिंह और उनके सहयोगियों की मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदल दिया जाय.
- *भगत सिंह और उनके सहयोगियों की मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदलने की बात को इरविन द्वारा नहीं माना गया था.
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गांधी-इरविन समझौते का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
1931 में एम के गांधी और भारत के वाइसराय लॉर्ड इरविन के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते ने ब्रिटिश सरकार को कुछ मांगें मान लीं। वे हैं: (i) सभी अध्यादेशों और मुकदमों को वापस लेने के लिए। (ii) सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिए, (iii) सत्यगढ़ियों की जब्त की गई संपत्तियों को बहाल करने के लिए, (iv) नमक के मुफ्त संग्रह या निर्माण की अनुमति देने के लिए.
गोलमेज सम्मेलन क्या थे ?
गोलमेज सम्मेलन भारत में स्वतंत्रता और संवैधानिक सुधार पर चर्चा करने के लिए भारतीय नेताओं और ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित तीन 'शांति सम्मेलन' थे.
सरोजिनी नायडू ने "दो महात्मा" किसे कहा था ?
उत्तर- गाँधी-इरविन को.
गांधी-इरविन समझौते में गांधी की वे कौन सी मांगे थी जिन्हें इरविन द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था ?
उत्तर - *भगत सिंह और उनके सहयोगियों की मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदल दिया जाय. * आंदोलन के दमन के दौरान पुलिस की ज्यादतियों की एक सार्वजनिक जांच हो.
गांधी-इरविन पैक्ट या गाँधी इरविन समझौता कब और किसके बीच हुआ था ?
उत्तर - गांधी-इरविन पैक्ट या गाँधी इरविन समझौता 5 मार्च सन 1931 को महात्मा गाँधी और भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन के बीच हुआ था.