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पैदल सेना दिवस का इतिहास क्या है
पैदल सेना दिवस के अवसर के लिए 27 अक्टूबर को चुना गया क्योंकि इस दिन पहले भारतीय पैदल सेना के सैनिकों ने बाहरी आक्रमण से भारत की रक्षा की थी। जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर के बाद 26 अक्टूबर 1947 को यह क्षेत्र भारतीय प्रभुत्व का हिस्सा बना था। जल्द ही सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन पाकिस्तानियों के खिलाफ लड़ने के लिए श्रीनगर एयर बेस पर पहुंची थी।
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पाकिस्तान के नियमित 22 अक्टूबर को उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत के आदिवासी क्षेत्र से आदिवासी एवं स्वयंसेवकों के बीच में जम्मू कश्मीर में शामिल हुए थे। समूह का प्राथमिक उद्देश्य राज्य पर जबरन कब्जा करना एवं इसे पाकिस्तान के हाथ से पाकिस्तान के साथ लाना था। जम्मू कश्मीर के राज्य द्वारा प्रारंभिक प्रतिरोध के बाद महाराजा द्वारा पानी ग्रहण के आधार पर हस्ताक्षर करने के बाद 27 अक्टूबर को पाकिस्तानी कार्यों को भगाने के लिए भारतीय सैनिकों को बुलाया गया था।सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इस ऐप से करें फ्री में प्रिपरेशन - Safalta Application
भारतीय टीम को 26 अक्टूबर की रात इस बात की सूचना दी गई थी। वहां से चले गए जहां उन्हें नई दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर तैनात किया गया था। अगली सुबह 27 अक्टूबर को श्रीनगर ले जाया गया जहां उन्हें पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से हवाई क्षेत्र को मुक्त करवाना था। श्रीनगर हवाई क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद भारतीय सैनिक आक्रमणकारियों को रोकने के लिए और दीवान रंजीत राय की ओर बढ़ने में सक्षम थे, लेकिन अपनी जान गवा दी। उनके लिए और उनके मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से लेफ्टिनेंट कर्नल दिलवाने दीवान रंजीत राय को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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