Life Imprisonment in India: क्या भारत में उम्र कैद की सजा 14 साल के लिए होती है? जाने यहां पूरी जानकारी

Safalta Experts Published by: Kanchan Pathak Updated Tue, 31 Jan 2023 04:11 PM IST

सभी प्रगतिशील देशों में न्याय प्रशासन एक निश्चित सिद्धांतों के आधार पर काम करता है. ये सिद्धांत अभियुक्त का दोष, न्यायालय के तर्क और न्यायोचितता आदि के आधार पर सृजित किए जाते हैं. इन सिद्धान्तों में गंभीर अपराधों के लिए ऐसे दण्डों का प्रावधान किया गया है जिससे लोग दण्ड के भय से ऐसे अपराधों को करने से डरें और समाज के भीतर शान्ति व्यवस्था कायम रह सके. अपराध की प्रकृति के आधार पर अदालत यह तय करती है कि दोषी को कौन सी सजा दी जाए. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के तहत इन गम्भीर अपराधों में सबसे बड़ी सज़ा मृत्यु दण्ड और उसके बाद आजीवन कारावास की सज़ा होती है. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here
May Month Current Affairs Magazine DOWNLOAD NOW
Indian States & Union Territories E book- Download Now
 

Free Demo Classes

Register here for Free Demo Classes

आजीवन कारावास -

भारत में आजीवन कारावास एक ऐसा दण्ड है जिसे पाने वाले को अपना पूरा जीवन कैद में बिताना पड़ता है. उच्चतम न्यायलय द्वारा आजीवन कारावास का मतलब जीवनपर्यन्त का कारावास निर्धारित किया गया है. आजीवन कारावास एक ऐसी सज़ा है जो बेहद गम्भीर किस्म के मामलों में अभियुक्त को सुनाई जाती है. जैसे - हत्या, बलात्कार, देशद्रोह आदि.

निर्वासन का दण्डादेश -

भारतीय दण्ड संहिता 1860 में आजीवन कारावास को पहले निर्वासन का दण्डादेश या कालापानी की सज़ा कहा जाता था क्योंकि तब आजीवन कारावास पाए हुए व्यक्ति को राज्य से बाहर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में सज़ा काटने के लिए भेज दिया जाता था. परन्तु 1955 में भारतीय दण्ड संहिता संशोधन अधिनियम के तहत ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ शब्द को बदल कर इम्प्रिसोंमेंट ऑफ़ लाइफ (आजीवन कारावास) कर दिया गया.

क्या आजीवन कारावास 14 साल का होता है ?

कुछ मामलों में लोगों में यह भ्रांतियां हैं कि आजीवन कारावास 14 साल या 20 साल का होता है, जबकि इसमें कोई सच्चाई नहीं है. दरअसल भारतीय दण्ड अधिनियम की धारा 55 के एक नियम के मुताबिक आजीवन कारावास को संक्षिप्त किया जा सकता है. इसमें उपयुक्त राज्य सरकार जिसमें दण्ड का आदेश दिया गया या केंद्र हीं सज़ा कम कराने का माध्यम हो सकता है अन्य कोई नहीं. इसके अलावा 2012 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला किया था और उम्रकैद की सजा सीमित नहीं है, और इसे 25 साल तक बढ़ाया भी जा सकता है.

इस नियम के अनुसार केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड पाए हुए अपराधी की सज़ा को कम करके आजीवन कारावास में बदला जा सकता है. राज्य सरकार यह तय करती है कि अपराधी को 14 साल, 20 साल, 30 साल या जीवन भर जेल में रहना पड़ेगा. लेकिन यह अवधि 20 साल या फिर न्यूनतम 14 साल से कम नहीं हो सकती है. 20 साल या फिर न्यूनतम 14 साल भी हुई तो यह सरकार द्वारा कम करवाई हुई सज़ा होती है इससे लोगों में यह भ्रान्ति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए कि आजीवन कारावास की सज़ा 14 साल की होती है. उदाहरण -सिद्धार्थ वशिष्ठ @मनु शर्मा बनाम जेसिका लाल हत्याकांड.
 
Quicker Tricky Reasoning E-Book- Download Now
Quicker Tricky Maths E-Book- Download Now
खेल ई-बुक - फ्री  डाउनलोड करें  
साइंस ई-बुक -  फ्री  डाउनलोड करें  
पर्यावरण ई-बुक - फ्री  डाउनलोड करें  
भारतीय इतिहास ई-बुक -  फ्री  डाउनलोड करें  
 

घटी हुई अवधि है 14 साल न कि सज़ा की पूरी अवधि -

14 या 20 साल के बाद अपराधी को जेल से बरी कर देना उस अपराधी के चरित्र के ऊपर निर्भर करता है. दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सजा के मुआवजे, रूपांतरण और सहनशीलता भी एक बिंदु है. फिर भी चाहे कोई भी सरकार हो आजीवन कारावास की सज़ा पाए हुए अपराधी को 14 साल के कारावास को भोगने के बाद हीं मुक्त किया जा सकता है. सीआरपीसी की धारा 433-ए के अनुसार आजीवन कारावास की घटी हुई अवधि 14 साल से कम नहीं हो सकती है
गोपाल विनायक गोडसे में यह महाराष्ट्र राज्य के खिलाफ आयोजित किया गया था कि आजीवन कारावास, आजीवन कारावास है और कुछ नहीं और इसलिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाला कैदी अपना शेष जीवन जेल में बिताने के लिए बाध्य है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया गया है कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस तरह की सजा को कम या माफ किया जा सकता है, इस तर्क में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के एक पीठ द्वारा पुष्टि की गई थी कि आपराधिक संहिता और प्रक्रिया के नियम स्पष्ट रूप से जीवन और प्रक्रिया के बीच अंतर करते हैं.
 
आजीवन कारावास का उद्देश्य -

सजा से व्यक्तित्व परिवर्तन -

जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो साबित होने पर उसे एक अदालत द्वारा सज़ा दी जाती है और फिर जेल में डाल दिया जाता है. यहाँ अपराध सिद्ध व्यक्ति से उस की सभी स्वतंत्रता छीन ली जाती है और उसे उसके घर समाज से दूर कर दिया जाता है. इस प्रकार की सजा व्यक्ति को एक अच्छा इंसान भी बना सकती है. जेल में रहते हुए उसके अच्छे चरित्र को देखते हुए बाद में न्यायालय उसकी मौलिक स्वतंत्रता को बहाल कर सकती है और उसे अपने परिवार के साथ समाज में स्वतंत्र रूप से रहने का अवसर भी दे सकती है. कभी-कभी न्यायालय अपराधियों को आजीविका के लिए काम भी देता है ताकि वे दोबारा अपराध न करें. इसलिए अपराधियों को उसके गलत कार्यों के लिए दंड मिलना महत्वपूर्ण हैं.
 
अपराध का निरोध -

अपराधियों को दंडित करने से समाज के अन्य लोगों को भय उत्पन्न होता है और वे गलत कामों को करने से डरते हैं इससे समाज में अपराध का शमन होता है और शान्ति बनी रहती है. घर समाज से दूर जेल में सज़ा काटते अपराधी में यह भावना जन्म ले सकती है कि वे अपने अपराध को दोबारा न दोहराएं. सजा अपराधियों को जीवन का मूल्य सिखाती है. और उन्हें खुद को बदलने और कानून का पालन करने वाले नागरिक बनने का मौका देती है

क्या कोई अन्य विकल्प है ?

अपराध करने के बाद, कैदी के पास रिहा होने का कोई विकल्प नहीं होता है और उसे जेल की सजा का सामना करना हीं पड़ता है. सीआरपीसी की धारा 433-ए के अनुसार आजीवन कारावास की घटी हुई अवधि 14 साल से कम नहीं हो सकती है.

समाज की सुरक्षा -

हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को समाज में रहने देना हर हाल में खतरनाक हो सकता है इसलिए उसे पुलिस के हवाले करना जरुरी है. हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को न्यायाधीश द्वारा आदेशित आजीवन कारावास का सामना करना पड़ता है, और यही एक तरीका है जिससे हम अपने परिवार, समाज और जनता को इन अपराधियों से बचा सकते हैं.
 
Attempt Free Daily General Awareness Quiz - Click here
Attempt Free Daily Quantitative Aptitude Quiz - Click here
Attempt Free Daily Reasoning Quiz - Click here
Attempt Free Daily General English Quiz - Click here
Attempt Free Daily Current Affair Quiz - Click here


उल्टा भी पड़ता है पासा -

कैदी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जेलें बनाई गयी हैं लेकिन कभी-कभी यह पहल उलटी हो जाती है और अपराधियों के मन में नकारात्मक रवैया ला देती है. कारागार अपराधी की स्वतंत्रता छीनकर उसके मन में भय की भावना पैदा करना चाहती है पर कई बार पश्चाताप की बजाय अपराधियों के मन में प्रतिशोध और क्रोध की भावना विकसित हो जाती है.

जेल में सकारात्मक प्रभाव पैदा करने के लिए दोषियों की उचित काउंसलिंग आवश्यक है, उन्हें अपनी गलती का एहसास कराने और उस के लिए पश्चाताप करने में सहायता की जानी चाहिए. उन्हें यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वे इस तरह के कृत्यों को दुबारा कभी न दोहराएं.

भारतीय संविधान में आजीवन कारावास पर निम्न नियमों का उल्लेख है -
  • आजीवन कारावास का मतलब जीवन के अंत सज़ा काटनी होगी.
  • यह सज़ा जीवन भर चल सकती है.
  • आजीवन कारावास की सज़ा 14, 20 या 25 वर्ष है.
  • अपराधी जेल या बाहर उसके रिश्तेदार उसकी रिहाई का अनुरोध या मांग नहीं कर सकते.
  • आजीवन कारावास को माफ नहीं किया जा सकता.
भारत के पड़ोसी देश

IPL Winners की लिस्ट

उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री
भारत के प्रधानमंत्रियों की सूची IAS 2021 टॉपर लिस्ट विश्व की दस सबसे लंबी नदियां

किन कारणों पर हो सकती है कैदी की रिहाई -
  • अगर कोई निर्दोष व्यक्ति गलती से अपराध के लिए पकड़ा जाता है, तो उसे रिहा कर दिया जाता है.
  • व्यक्ति के व्यवहार, स्वास्थ्य और पारिवारिक स्थिति को देख कर भी सज़ा कम होती है. यदि कोई व्यक्ति सज़ा के दौरान बदल जाता है और अच्छे चरित्र का अच्छा इंसान बन जाता है कि ऐसा दीखता है कि वह अब कभी अपराध नहीं करेगा तो उसे रिहा किया जा सकता है.
  • यदि आजीवन कारावास की सजा किसी महिला को मिलती है, और सज़ा काट रही महिला गर्भवती हो जाती है या उसे प्रजनन संबंधी कोई अन्य समस्या है, तो उसे रिहा किया जा सकता है.
  • 14 साल से पहले किसी भी कैदी को रिहा नहीं किया जाता है.
नोट -
आजीवन कारावास की अवधि घटने के बाद भी किसी भी हाल में 14 साल से कम नहीं हो सकती है
 

भारत में आजीवन कारावास क्या है?

भारत में आजीवन कारावास का अर्थ है किसी व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए कारावास की सजा।

क्या भारत में आजीवन कारावास मृत्युदंड के समान है?

नहीं, आजीवन कारावास और मृत्युदंड अलग-अलग हैं। आजीवन कारावास का अर्थ है अपराधी के शेष जीवन के लिए कारावास, जबकि मृत्युदंड का अर्थ है फांसी या घातक इंजेक्शन द्वारा सजा का निष्पादन।

Related Article

UP Police: यूपी पुलिस भर्ती का आवेदन पत्र डाउनलोड करने का एक और मौका, यूपीपीआरपीबी ने फिर से सक्रिया किया लिंक

Read More

JEE Advanced 2025: जेईई एडवांस्ड के लिए 23 अप्रैल से शुरू होगा आवेदन, जानें कौन कर सकता है पंजीकरण

Read More

UPSC CSE Mains 2024 Interview Schedule out now; Personality tests from 7 January, Check full timetable here

Read More

Common Admission Test (CAT) 2024 Result out; 14 Students Score 100 Percentile, Read here

Read More

CAT Result: कैट परीक्षा के परिणाम जारी, इतने उम्मीदवारों ने 100 पर्सेंटाइल स्कोर किए हासिल; चेक करें रिजल्ट

Read More

CBSE: डमी प्रवेश रोकने के लिए सीबीएसई का सख्त कदम, 18 स्कूलों को जारी किया कारण बताओ नोटिस

Read More

Jharkhand Board Exam Dates 2025 released; Exams from 11 February, Check the full schedule here

Read More

JAC Board Exam 2025: झारखंड बोर्ड कक्षा 10वीं-12वीं की परीक्षाओं के लिए तिथियां जारी, 11 फरवरी से होंगे एग्जाम्स

Read More

Pareeksha Pe Charcha 2025: जनवरी में होगी पीएम मोदी के साथ परीक्षा पे चर्चा, इस तारीख तक करें पंजीकरण

Read More