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मराठा प्रशासन में राज्य की सारी शक्ति राजा में निहित थी, राजा हीं राज्य के अंतिम कानून निर्माता थे. इनके शासन के दौरान जो आधिकारिक भाषा प्रयोग होती थी वो मराठी भाषा थी. मराठी भाषा की प्रगति और विकास के लिए शिवाजी ने रघुनाथ पंडित हनुमंते की अध्यक्षता में एक कमिटी का गठन किया जिसका कार्य था एक शब्दकोष का निर्माण करना. इन्होने एक मराठी शब्दकोष का निर्माण किया जिसका नाम है “राज्य व्यवहार कोष”.
आधुनिक मंत्रिपरिषद की तरह हीं उन्होंने अष्ट प्रधान नामक एक प्रशासनिक संस्था का निर्माण किया था, जिसमें आठ प्रकार के विभाग थे, और इन आठों विभाग के आठ प्रमुख हुआ करते थे. अष्ट प्रधान का कार्य था प्रशासन में शिवाजी को सलाह देना और उनकी सहायता करना.
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अष्ट प्रधान –
अष्ट प्रधान की नियुक्ति स्वयं शिवाजी करते थे. ये मंत्री अपने-अपने विभाग के प्रधान होते थे और शिवाजी के सचिव के रूप में कार्य किया करते थे. शिवाजी ने अष्ट प्रधान के पदों को कभी भी वंशानुगत नहीं होने दिया.1) पेशव- राजा के प्रधानमंत्री होते थे पेशवा. इनका कार्य था सम्पूर्ण राज्य में शासन की देखभाल करना. छत्रपति की अनुपस्थिति में उनके कार्यों का भी देखभाल करना.
2) अमात्य- राज्य के अर्थ एवं राजस्व मंत्री थे. इनका कार्य था राज्य के सारे आय-व्यय की देखभाल करना और राजा को उनसे अवगत कराना.
3) मंत्री/वाकियनवीस- ये दरबारी लेखक होते थे. इनका काम था राजा के दैनिक कार्यों एवं दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाही का विवरण रखना.
4) सुमंत- ये विदेश मंत्री होते थे. इनका कार्य था राजा को संधि और युद्ध के बारे में सलाह देना, विदेशों से समाचार प्राप्त करना.
5) सचिव- ये पत्राचार विभाग के प्रमुख होते थे. इनका कार्य था राजा के पत्रों को सही तरीके से लिखवाना, परगनों में आय-व्यय की देखभाल करना. इन्हें कई बार चिटनिस के रूप में भी संबोधित किया जाता था. वैसे इनके निचले अधिकारी को चिटनिस कहते थे.
6) सेनापति/सर-ए-नौबत- सेनापति या सर-ए-नौबत मराठा सेना का प्रमुख हुआ करता था. ये सेना की भर्ती, उसके संगठन, शिक्षा, शस्त्र, रसद आदि का भी ध्यान रखते थे.
7) पंडित राव- पंडित राव धार्मिक मामलों में राजा का मुख्य सलाहकार हुआ करता था. राजा की ओर से दान देना, धर्म और जाति के झगड़ों का निर्णय करना भी पंडित राव का हीं काम हुआ करता था.
8) न्यायाधीश- जैसा कि नाम से हीं स्पष्ट है ये राजा के मुख्य न्यायाधीश हुआ करते थे. इनका कार्य था सैनिक और असैनिक झगड़ों पर हिन्दू कानून के अंतर्गत न्याय करना. भूमि सम्बंधित झगड़ों, गाँव के मुखिया के पद के झगड़ों इत्यादि में ये निर्णय लिया करते थे.
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इन अष्ट प्रधानों की सहायता के लिए और भी कुछ अधिकारी हुआ करते थे –
मजूमदार - ये लेखाकार हुआ करते थेचिटनिस – सचिव के सहायक
जमादार – खजांची हुआ करते थे
पोटनिस – पैसे की गिनती करने वाला अधिकारी
इनके अलावा फडणविस, कारखानीस, दीवान इत्यादि अधिकारी भी हुआ करते थे.
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प्रांतीय प्रशासन –
- मराठों का पूरा साम्राज्य छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित था और हर इकाई के एक प्रमुख हुआ करते थे. प्रशासन काफी अच्छी तरह से व्यवस्थित था.
- मराठा साम्राज्य दो भागों में विभाजित था – स्वराज और मुग़लों के अधीन आने वाला क्षेत्र.
- स्वराज मराठों का अपना क्षेत्र हुआ करता था और मुग़लों के अधीन आने वाले क्षेत्र मराठों के आसपास के क्षेत्र थे. इन क्षेत्रों से ये लोग चौथ (एक प्रकार का कर) वसूला करते थे.
- अपने क्षेत्र स्वराज को इन्होने तीन प्रान्तों में बाँट दिया था – उत्तरी प्रान्त, दक्षिणी प्रान्त और दक्षिणी पूर्वी प्रांत.
- उत्तरी प्रान्त का विस्तार सूरत से लेकर पुणे तक था, दक्षिणी प्रान्त का विस्तार उत्तरी कर्नाटक और दक्षिणी पूर्वी प्रांत में सतारा कोल्हापुर का क्षेत्र आता था. इसके बाद प्रान्तों को महलों और परगनों में बांटा गया. महलों और परगनों को तर्फों में और तर्फों को मौजा में बांटा गया था. मौजा गाँवों के समूह को कहते थे. मराठा साम्राज्य की सबसे छोटी इकाई गाँव थी, जिसके प्रधान को पटेल या पाटिल कहते थे.