Source: social media
Current Affairs Ebook Free PDF: डाउनलोड करे |
Judicial Review की उत्पत्ति –
न्यायिक समीक्षा के सिद्धांत की उत्पत्ति मूलतः अमेरिका से मानी जाती है. हालांकि अमेरिका के संविधान निर्माण के समय न्यायिक समीक्षा की कोई व्यवस्था नहीं थी. 1803 के “मारबरी बनाम मेडिसन” के केस में सर्वप्रथम न्यायाधीश “मार्शल” द्वारा न्यायिक समीक्षा को परिभाषित किया गया.
भारत में Judicial Review–
भारत के संविधान में न्यायिक समीक्षा से सम्बंधित कोई भी विशेष उपबंध नहीं है, लेकिन न्यायपालिका की सर्वोच्चता में यह सिद्धांत निहित है.
यह भी पढ़ें
नरम दल और गरम दल क्या है? डालें इतिहास के पन्नों पर एक नजर
संवैधानिक प्रावधान –
हमारे संविधान में न्यायिक समीक्षा से सम्बंधित मुख्य अनुच्छेद, अनुच्छेद 13 का उपबंध 2 और अनुच्छेद 32 है. अनुच्छेद 13(2) में इस बात का वर्णन है कि राज्य कोई भी ऐसी विधि नहीं बनाएगा जो संविधान के भाग 3 में उल्लिखित नागरिकों के मूल अधिकारों को छीनती हो, सीमित करती हो या न्यून करती हो. अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों के अधिकारों के तहत सुप्रीम कोर्ट के पास यह सुनिश्चित करने की शक्ति है की कहीं भी मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण ना हो. कोई भी ऐसा कानून जो देश की मूल विधि या संविधान के विरुद्ध हो, उसका उल्लंघन करता हो, सुप्रीम कोर्ट उसे असंवैधानिक घोषित कर अमान्य करार दे सकती है.
यह भी पढ़ें
जानें एक्सिस और सेंट्रल पॉवर्स क्या है व इनमें क्या अंतर हैं
न्यायिक समीक्षा की सीमायें –
न्यायपालिका की इस शक्ति के लिए कुछ सीमायें भी सुनिश्चित की गयी हैं जो इसे निरंकुश बनने से रोकती हैं.
1) न्यायपालिका न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत केवल उन्हीं कानूनों की समीक्षा कर सकती है जो उसके समक्ष वाद या मुकदमों के रूप में लाये गए हों.
2) किसी कानून को तभी अवैध घोषित किया जा सकता है जब कानून की असंवैधानिकता पूर्ण रूप से स्पष्ट हो.
3) इस शक्ति का प्रयोग कानून की उचित प्रक्रिया के तहत हीं किया जा सकता है.
4) कानून की केवल उन्हीं धाराओं को अवैध करार दिया जा सकता है जो संविधान के विपरीत हों, समस्त कानून को नहीं.
5) राजनैतिक विवादों में न्यायिक समीक्षा का प्रयोग वर्जित है.
6) न्यायपालिका ऐसे संविधान संशोधन कानून को अमान्य नहीं घोषित कर सकती जो संविधान की मूलरूप या आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं करते हैं.
7) 24 अप्रैल 1973 के पहले के बने वे कानून जो संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल हैं, उनकी समीक्षा नहीं की जा सकती है.
जानें लोकसभा और राज्यसभा क्या है व लोकसभा और राज्यसभा में क्या अंतर है
न्यायिक समीक्षा का महत्व –
* न्यायपालिका को एक स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान करना जिससे वह विधायिका और कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त रहकर देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण में योगदान दे सके.
* संघात्मक व्यवस्था में संघ और राज्य के बीच के गतिरोध के निवारण हेतु भी यह व्ययस्था बहुत महत्वपूर्ण है.
* व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित होती है.
* यह व्यवस्था संविधान को गत्यात्मक बनाये रखती है
* संविधान की आधारभूत संरचना का संरक्षण करके न्यायिक समीक्षा की व्ययस्था संविधान की सर्वोच्चता बनाये रखने में योगदान देती है.
* यह सामाजिक-राजनीतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती है.