Status of Tribes in India: जानिए भारत में क्या है जनजातियों की स्थिति

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Wed, 23 Feb 2022 03:03 PM IST

जनजाति की परिभाषा हम इस प्रकार दे सकते हैं कि, ''जनजाति मनुष्यों का ऐसा समूह है जो स्वयं के इनक्लोज या सीमित समाज(जहाँ बाहरी लोगों को रहने की स्वीकृति नहीं) में एक साथ रहते हैं. इसे कबीला भी कहते हैं. इस समूह में केवल वही लोग रह सकते हैं जो समान वंश, समान संस्कृति, समान पूर्वज से सम्बद्ध होते हैं.'' इनकी जीवन शैली जमीन से जुड़ी हुई होती है और ये अपने पूर्वजों के बनाए अतीत के नियम तथा परम्पराओं का पालन करते हैं. इसलिए इनकी भाषा बोली और धर्म समान होता है. इनका एक कॉमन मुखिया होता है और ये सभी एक साथ एक साझा भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं. इनका अपना सामाजिक न्याय है और अपने समाज के अन्दर इन्हें बाहरी दुनिया का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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भारत में जनजातियों की स्थिति- (Status of Tribes in India)


और आईए अब एक नज़र डालते हैं भारत में जनजातियों की स्थिति पर. भारत आदिवासी समुदायों की विशाल आबादी के लिए जाना जाता है, यहाँ 84 मिलियन से अधिक लोग आदिवासी समुदायों का हिस्सा हैं, ये सभी तकरीबन 50 विभिन्न जनजातियों में विभाजित हैं. भारत की जनजातियों को भौगोलिक आधार पर विभिन्न भागों में विभाजित किया गया है. जैसे-उत्तर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनजाति, मध्य क्षेत्र की जनजाति, दक्षिण क्षेत्र की जनजाति और द्वीपीय क्षेत्र की जनजाति.

उत्तर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनजाति-

उत्तर तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र के अंतर्गत कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड तथा पूर्वोत्तर के राज्य आते हैं. इन क्षेत्रों में गुर्जर, भोटिया, ख़ासी, थारू, बुक्सा, राजी, जौनसारी, शौका, किन्नौरी, गारो, बकरवाल, जयंतिया आदि जनजातियाँ निवास करती हैं.

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मध्य क्षेत्र की जनजाति-

मध्य क्षेत्र के अंतर्गत मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, दक्षिण राजस्थान, ओडिशा आदि राज्य आते हैं जहाँ भील, गोंड, संथाल, हो, मुंडा, उरांव, कोल, बंजारा, मीणा, कोरवा, कोली, रेड्डी आदि जनजातियाँ निवास करती हैं.

दक्षिण क्षेत्र की जनजाति-

दक्षिणी क्षेत्र के अंतर्गत कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल आदि राज्य आते हैं जहाँ भील, गोंड, टोडा, कोरमा, कडार, इरुला आदि जनजातियाँ निवास करती हैं.

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द्वीपीय क्षेत्र की जनजाति-

द्वीपीय क्षेत्र में अंडमान एवं निकोबार की जनजातियाँ आती हैं. जैसे - सेंटिनलीज, ओंग, जारवा, शोम्पेन आदि.

जनजातियाँ और उनकी समस्याएँ -

*आज भी बाहरी दुनिया से सामाजिक संपर्क इन्हें ख़ास पसंद नहीं आता. इसलिए आमतौर पर ये जनजातियाँ, कबीले या आदिवासी समुदाय ऐसे इलाकों में निवास करती हैं, जो औद्योगिक क्षेत्रों से काफी दूर होते हैं. उस स्थान तक बुनियादी सुविधाओं की पहुँच न के बराबर हीं हैं. इस प्रकार ये शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन तथा पोषण संबंधी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं. लिहाज़ा इन्हें बहुत सारी समस्याओं को झेलना पड़ता है.

*आदिवासियों के आर्थिक पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह निरक्षरता तथा सामाजिक-सांस्कृतिक अलगाव है. जिस कारण ये गरीबी तथा ऋणग्रस्तता में जकड़े हुए हैं. आज भी जनजातियों के समुदाय का एक तबका दूसरों के घरों में काम करके अपना जीवनयापन कर रहा है. आर्थिक तंगी के कारण ये अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं पाते और कई बार तो पैसे के लिये उन्हें बड़े व्यवसायियों या दलालों को बेच देते हैं. कितनी ग्लानि की बात है कि विषम परिस्थितियों के कारण इनकी लड़कियों को वेश्यावृत्ति जैसे घिनौने दलदल में धकेल दिया जाता है.

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*इनके अपने अलग देवी-देवता होते हैं. सो धार्मिक अलगाव भी इन जनजातियों की समस्याओं का एक बड़ा कारण है. हालाँकि अब स्थिति बदल चुकी है पर अगर हम पीछे देखें तो पहले इन जनजातियों को अछूत तथा अनार्य मानकर समाज से बेदखल कर दिया जाता था, सार्वजनिक मंदिरों में प्रवेश तथा पवित्र स्थानों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया जाता था.

*परन्तु अब अनुसूचित जनजातियों के हितों की प्रभावी तरीके से रक्षा के लिए अनेक आयोग और संस्थान बनाए गए हैं. केंद्र तथा राज्यों में जनजातियों के कल्याण हेतु अलग-अलग विभागों की स्थापना की गई है. इसके अंतर्गत 2003 में 89वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा पृथक राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना भी की गई है. संविधान में जनजातियों के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए राज्यों की विधानसभाओं तथा पंचायत चुनावों में उनके स्थान सुरक्षित रखे गए हैं. सरकारी सहायता अनुदान, अनाज बैंकों की सुविधा, आर्थिक उन्नति हेतु प्रयास, सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व समेत उचित शिक्षा व्यवस्था जैसे - उनके लिए छात्रावासों का निर्माण और छात्रवृत्ति की उपलब्धता, सांस्कृतिक सुरक्षा मुहैया कराना आदि अनेकों सुविधाएँ उन्हें दी जा रही है.

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उपसंहार-
इन सुविधाओं का परिणाम भी सामने है कि, जनजातियों की साक्षरता दर जो 1961 में लगभग 10.3% थी, 2011 की जनगणना के अनुसार आज लगभग 66.1% तक बढ़ चुकी है. गवर्मेंट के नियमों के अनुसार सरकारी नौकरी प्राप्त करने की दृष्टि से अनुसूचित जातियों के सदस्यों की आयु सीमा तथा उनके योग्यता मानदंड में विशेष छूट की व्यवस्था की गई है. अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्रों के लिये एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना शुरू की गई है जिसका उद्देश्य दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों को मध्यम और उच्च स्तरीय शिक्षा की सुविधा प्रदान करना है. तो अनुसूचित जनजाति कन्या शिक्षा योजना निम्न साक्षरता वाले जिलों में अनुसूचित जनजाति की लड़कियों के लिये शुरू की गई एक लाभकारी योजना है.

धीरे धीरे अब इनकी स्थिति भी सामान्य होने लगी है. हमारा यह कर्त्तव्य होना चाहिये कि अपने हितों के साथ-साथ जनजातियों के हितों की भी रक्षा करें. तथा जो जनजातीय समुदाय सामान्य समाज के संपर्क में आने को इच्छुक हैं हमें सहर्ष उनका स्वागत करना चाहिये.

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