Source: Safalta
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बहुत पुराना विवाद
वर्ष 1955 में रावी, व्यास और सतलज का जल स्तर 15.85 मिलियन एकड़ फीट का हुआ करता था. इनमें से राजस्थान को 8 मिलियन एकड़ फीट, अविभाजित पंजाब (पंजाब+हरियाणा) को 7.2 मिलियन एकड़ फीट और जम्मू कश्मीर को 0.65 मिलियन एकड़ फीट पानी का सप्लाई दिया जाता था. इसके बाद वर्ष 1966 में हरियाणा के पंजाब से अलग होने के बाद 24 मार्च 1967 को सेंट्रल गवर्नमेंट (गवर्नमेंट ऑफ़ इन्डिया) ने नोटिफिकेशन जारी किया और कहा कि पंजाब के 7.2 मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 मिलियन एकड़ फीट पानी का हिस्सा हरियाणा का होगा. और इसके लिए सरकार ने 212 किलोमीटर लम्बे एक कैनाल को बनाने का निर्देश दिया. इस कैनाल का 122 किलोमीटर का हिस्सा पंजाब में जबकि 90 किलोमीटर का हिस्सा हरियाणा में बनना था. पानी की अधिक जरुरत की वजह से हरियाणा की तरफ से जून 1980 तक इस कैनाल के अपने हिस्से का काम पूरा कर लिया गया परन्तु पंजाब ने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया और ये कहते हुए हरियाणा को पानी देने से इनकार कर दिया कि ‘’नदी के पानी पर केवल उस राज्य और देश का अधिकार होता है जिस राज्य और देश से होकर वह नदी बहती है.’’प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी का प्रयास
इसके बाद वर्ष 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के प्रयास से सतलुज यमुना लिंक नहर का काम आगे बढ़ा परन्तु संत हरचन्द सिंह लोंगोवाल के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल पार्टी ने इसे एक धर्म युद्ध का रूप दे दिया. इसी बीच अनेक घटनाक्रमों और फिर इन्दिरा गाँधी की हत्या हो गयी.राजीव+लोंगोवाल अग्रीमेंट
अब इसके बाद राजीव गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक अग्रीमेंट राजीव+लोंगोवाल अग्रीमेंट साईन किया गया जिसके मुताबिक पंजाब वाले हिस्से के सतलुज यमुना लिंक नहर का काम अगस्त 1986 तक पूरा करने की बात कही गयी. इसके बाद सतलुज यमुना लिंक नहर का काम आगे बढ़ा परन्तु तकरीबन 90% काम पूरा हो जाने के बाद फिर से राज्य में हिंसा की घटनाएँ शुरू हो गयी इस क्रम में दो सीनियर इंजीनियरों समेत 35 लोगों की हत्या कर दी गयी और इस तरह सतलुज यमुना लिंक नहर का काम फिर से रोक दिया गया. इसके बाद वर्ष 1996 में हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में अपने हिस्से के पानी के लिए फिर से दावा किया. वर्ष 2002-2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब को अपने क्षेत्र में सतलुज यमुना लिंक नहर के काम को पूरा करने का निर्देश दिया.पंजाब का इनकार
अब इसके बाद वर्ष 2004 में पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स अधिनियम पारित कर दिया और इस अधिनियम के माध्यम से जल-साझाकरण समझौतों को समाप्त कर दिया. और इस तरह पंजाब में सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण कार्य एक बार फिर से पूरी तरह ठप कर दिया गया.सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
वर्ष 2016 में दुबारा सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब के 2004 के अधिनियम की वैधता पर निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सुनवाई शुरू की. और यह कहा कि पंजाब हरियाणा के साथ नदियों के जल को साझा करने के अपने वादे से पीछे हट रहा है. और सर्वोच्च न्यायालय ने इस अधिनियम को संवैधानिक रूप से अमान्य घोषित कर दिया.वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सतलुज यमुना लिंक नहर के मुद्दे पर केंद्र सरकार की मध्यस्थता और आपसी बातचीत के माध्यम से मामले को निपटाने का निर्देश दिया. जिसके बाद पंजाब ने जल की उपलब्धता के नए समयबद्ध आकलन हेतु एक न्यायाधिकरण की मांग की. अब एक नया न्यायाधिकरण सतलुज यमुना लिंक नहर के लिए इन सभी की जाँच सुनिश्चित करेगा.
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चर्चा में क्यों ?
हाल हीं में हरियाणा की विधानसभा ने कहा कि वह सतलुज यमुना लिंक नहर को पूरा करने के लिए एक प्रस्ताव पारित कर रहा है.पानी पर क्या कहते हैं पंजाब और हरियाणा
पंजाब
- पंजाब के कई क्षेत्रों में वर्ष 2029 के बाद जल समाप्त हो सकता है.
- सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है.
- पंजाब को पानी की आवश्यकता है क्योंकि पंजाब हीं केंद्र सरकार को हर साल लगभग गेंहू और धान की खेती करके 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है.
- राज्य के लगभग 79% क्षेत्र में पानी का अत्यधिक दोहन है और ऐसे में पंजाब का कहना है कि उसका किसी भी अन्य राज्य के साथ पानी साझा करना असंभव है.
हरियाणा
- इधर हरियाणा का तर्क है कि राज्य में सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराना कठिन हो चुका है.
- यहाँ तक कि हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों में पीने के पानी की भी समस्या है क्योंकि यहाँ का भूजल 1,700 फीट तक कम हो चुका है.
- और उसे उसके पानी के उचित हिस्से से वंचित किया जा रहा है.