एडवरटाइजिंग में कस्टमर्स को सच कहना और क्रिएटिव होना है बहुत जरूरी : अरविंद जोशी

Safalta expert Published by: Swayam Tiwari Updated Tue, 06 Jun 2023 02:19 PM IST

Highlights

क्रिएटिविटी और एडवरटाइजिंग विषय पर बात करने के लिए सफलता टाक प्लेटफॉर्म पर मेंटर बनकर पहुंचे एड जिनी संस्थापक अरविंद जोशी ने विद्यार्थियों से लंबी बात की। जिसके कुछ अंश हम यहां आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। 

आज कल हर उत्पाद या सेवा को लेकर बहुत सारी कंपनियां हैं और उनमें एक दूसरे से भारी कंप्टीशन है। कि कौन कितने बेहतर तरीके से एडवरटाइज करके अपनी चीजों को लोगों तक पहुंचा सकता है। क्रिएटिविटी और एडवरटाइजिंग विषय पर बात करने के लिए सफलता टाक प्लेटफॉर्म पर मेंटर बनकर पहुंचे एड जिनी संस्थापक अरविंद जोशी ने विद्यार्थियों से लंबी बात की। जिसके कुछ अंश हम यहां आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। 

Source: Safalta.com



Table of content: 
रचनात्मकता क्या है? 
किस तरह से प्रसिद्ध होगा युवाओं का कंटेंट
कम पैसे में अच्छे विज्ञापन कैसे चलायें
छोटे उद्योग वाले किस तरह से करें अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग


रचनात्मकता क्या है? 
अरविंद जोशी - क्रिएटिविटी क्या है ये एक बढ़िया प्रश्न है मैं आपको एक छोटा सा उदाहरण देता हूं मेरी एक छोटी सी 4 साल की बेटी है उसका पहला दिन था स्कूल का तो मैं उसका हाथ पकड़ कर लिफ्ट में गया। हम लिफ्ट की प्रतीक्षा कर रहे थे लिफ्ट के बाहर खड़े होकर, अचानक मेरी बेटी मेरी ओर मुड़ी और मुझसे बोली की लिफ्ट बिल्कुल मगरमच्छ की तरह है। अब इसमें दो चीज थीं कि एलेवेटर का उच्चारण जो है वो एलिगेटर की तरह सुनाई देता है या दूसरा उसके कहने का मतलब ये भी था कि जो एलीगेटर है वो जिस तरह अपना मुंह खोलता है या बंद करता है उसी तरह जो लिफ्ट है उसका मुंह भी खुलता है या बंद होता है तो यही आपकी क्रिएटिविटी है।

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क्रिएटिविटी वो है जहां आप जिस भी तरह का जो भी कर रहे हैं या जो भी आप कम्युनिकेशन के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं उसका जो मूल मकसद होता है उसे वो पूरा करें लेकिन उसके अलावा यदि वो कोई कार्य करता है तो वो क्रिएटिव हो जाता है। यानी जो अर्थ होता है कि कोई शब्द है, कोई भी तश्वीर है या कोई भी चीज है उसका एक मूल कार्य होता है उसे कुछ करना होता है, जब वो उस चीज को करे और वो करते हुए उस चीज के अलावा कोई भी एक फंक्शन और करता है तो वो एक क्रिएटिव वस्तु हो जाती है।
यहां दो अर्थ होते हैं एक तो वो कि जो कार्य उसका अपना है जो उसे करना है या दूसरा वो जो स्वयं निकल कर आए यानी कि आपको कोई डिक्शनरी में जाके देखना पड़े जैसे कि ये एलीगेटर का उदाहरण दिया उसमें ये एकदम से आपके मन में आता है कि इसका एक अर्थ और निकलता है। जब भी आपके पास कोई समानांतर अर्थ होता है कि यह किसी संचार को उपज देता है तो यह रचनात्मकता का संकेत है या एक संकेत या कला या कोई भी रूप जो वहां पर मौजूद हो।

किस तरह से वायरल होगा युवाओं का कंटेंट:
देखिये बहुत से युवाओं के छोटे स्टार्टअप है उन्हें पहुंच की जरूरत पड़ती है, क्योंकि जो बड़े ब्रांड होते हैं वो काफी ऐड में निवेश करते हैं तो आपके टीवी, रेडियो इत्यादि स्थान पर चलता है ओर यह है की प्रोडक्ट अच्छा हो या बुरा हो जब हज़ारों बार आपके कान में वो आता रहेगा तो आपको उस प्रोडक्ट के ऊपर विश्वास हो या ना हो आपको प्रोडक्ट के अस्तित्व का तो पता हो ही जाएगा, ये आपको पता हो ही जाएगा की एक मारुति नाम की गाड़ी है। आप कितने भी दूर दराज के इलाके में रहते हैं कहीं न कहीं आपके कानों में ये बात वो बोल चुका है कि फलाने नाम की एक गाड़ी है। लेकिन छोटा उद्योग यह कर नहीं पाता तो छोटे उद्योगों को लेकर मेरा ये ख्याल है कि क्रिएटिविटी से ज्यादा जो महत्वपूर्ण है वो है सत्य, सत्य बोलने की क्षमता या सच बोलने के नए तरीके इजाद करना।
क्रिएटिविटी जो है उसे आपको सुंदरता बढ़ाने में नहीं, उसको अपनी भाषा को सुंदर बनाने में लगाना है उसको सिर्फ इस बात को तय करने में लगाना है एक तो होता है सच, अब भाई मैं वाल वेअर्रिंग बनाता हूं या वो अच्छे वाल वेअर्रिंग हैं टूटते नहीं हैं और मेरी ये चार क्लाइंट है जिनको मैं ये बेच चुका हूं और इसका दाम ये है ये एक सच है, अब कोई एक आदमी आके यू ट्यूब में ये बोल देता है कि भाई मैं वाल वेअर्रिंग बनाता हूं और ये दाम है और ये है तो वो तो कोई देखने नहीं वाला है ठीक है, तो जिस तरह से हर एक चीज का एक फॉर्म होता है।

जैसे कि एक मां अपने बच्चे से बात करती है तो वो एक वात्सल्य से भरी हुई बात करती है, जब कोई अपने मित्र से बात करता है तब वो एक टोन अलग होता है।
हर व्यक्ति से बात करने का हमारा जो फॉर्म है या जिस भाषा की डिक्शनरी से हम शब्द उच्चारण करते हैं वहां एक अलग डिक्शनरी का प्रयोग होता है हर संबंध में जब बातचीत हो रही है उसी तरह एक कमर्शियल संस्थान है और एक खरीदार के बीच जब बातचीत होती है उनके भी कुछ सेट फॉर्म हैं और जो बड़े उद्योग हैं जो बड़े ब्रांड हैं उन्होनें इन सेट फॉर्म के ऊपर अरबों रुपये लगा रखें हैं।
अब होता क्या है कि इन सेट फॉर्म पर यदि आप बात करोगे जैसे सब एड बनाते हैं आप वैसा एड बनाओगे तो आपको उन अरबों रुपयों के निवेश वाले लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ेगी।
एक लघु उद्योग के रूप में जो आप कर नहीं सकते। तो आपको सबसे पहले क्या करना है कि जो हमारे विज्ञापन का सेट फॉर्म है उसे तोड़कर एक नया सेट फॉर्म लेकर आना पड़ता है जिसका द्वारा आप अपने विज्ञापनों को कम्यूनिकेट करें और वो जो हैं वो मुख्यतः दो तरह के होते हैं एक जो मनोरंजक हो या दूसरा जो सच बताने वाला हो।

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उदाहरण देता हूं मैं कि आप थोड़ी देर तक ये एड के बारे में भूल जाएं और कोशिश करें कि हमारे जीवन में वो कौन से अवसर आते हैं कि जब सच हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है, वो व्यक्ति जो बोल रहा है वो सच बोल रहा है बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
आप को बताता हूं जब एक जज अपना जजमेंट देता है उदाहरण के लिए या जब एक डॉक्टर अपने मरीज से बात कर रहा होता है ठीक है या जब एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को पढ़ा रहा होता है तब एक सच जरूरी है ये जो तीन चार मैंने आपको उदाहरण दिए हैं ये उदाहरण सच कहने के तरीकों के मोड हैं ।
आप एक किताब खोलते हैं या एक श्वेत पत्र पढ़ रहे हैं वो एक सच कहने का तरीका है अब जब हमें रचनात्मकता का इस्तेमाल करना है, विज्ञापन में हम क्या कोशिश करते हैं हम इनमें से किसी एक सच कहने के तरीके को अपनाएं और उसके माध्यम से उनको अनुकूलित करें।
जो पहले विज्ञापन की भाषा में अधिक प्रयोग में न रहा हो, वहां एड उठाकर आप एक टीचर की तरह बात करेंगे तो ये ट्रुथ टेलिंग मोड कहलाएगा। 
वहीं क्रिएटिविटी का इस्तेमाल जब एक छोटे उद्योग में होना हो, तो वहां पहले एक ट्रूथटेलिंग मोड लेकर आएं।
जब मोड आप सही चुन लेंगे तब उसके अंदर आपको बहुत अधिक सौंदर्य की जरूरत भी नहीं है वो दर्शक का ध्यान बटोर लेगा, या दूसरा फिर उसके डिस्ट्रीब्यूशन के तरीके आपको मालूम होने चाहिए।
आप ये मान लें कि आप वाल वेअर्रिंग बेच रहे हैं और उसका एड आप किसी विद्यार्थी को दिखाते हैं तो कोई फायदा नहीं है। तो इतनी व्यक्ति को समझ होनी चाहिए कि आपने एड तो बहुत बढ़िया बनाया मगर जब आप उसकी टारगेटिंग करते हैं वो सही तारीके से होनी चाहिए। 
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कम पैसे में अच्छे विज्ञापन कैसे चलायें:
इसमें मैं दो - तीन चीजें कहना चाहूंगा। दो दुनिया हैं, इनमें से एक है मार्केटिंग की दुनिया और दूसरी है सेल्स की दुनिया। हमारे देश में अक्सर इन दोनों शब्दों को समान करके देखा जाता है। कई बार पर्यायवाची माना जाता है आप अक्सर जो हमारे रीजनल इलाके में जो धंधे चलते हैं वहां जाएंगे, तो वो बोलेंगे कि मैं इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग करके आ रहा हूं। जो असल में सेल्स कर के आए हैं, चीज बेच के आए हैं। बेचने की वृत्ति मार्केटिंग में असल में आती नहीं है। बेचने की वृत्ति जो है वो असल में सेल्स का काम है। मार्केटिंग का काम है सेल्स से पहले जो प्रक्रिया होती है। सेल्स से पहले जिन अवस्थाओं की आवश्यकता होती है उसे बनाना। अब वो क्या चीजें हैं जो बनानी हैं। सबसे पहले कि आप जिसको सामान बेचना चाहते हैं उसको पता हो कि आप हो, और आप का उत्पाद या सेवा मौजूद है।
दूसरा काम है धीरे - धीरे उसके मन में उस उत्पाद या उस सेवा को पाने की इच्छा जागृत करना, जिसकी वजह से वो फिर खरीद के इरादे से निकल आए। जैसे एक नई फरारी गाड़ी है हिंदुस्तान में। अब यदि लोगों का ध्यान मुझे उसपर आकर्षित करना है तो वो कठिन कार्य नहीं है, जिस 12वीं के लड़के की जेब में 250 रुपये भी होंगे वो भी रुचि लेगा की भाई ये कौन सी फरारी गाड़ी है, क्योंकि उसकी इच्छा है, या वो ब्रांड फेमस है। जो मार्केटिंग वाला व्यक्ति है वो इस तरह से उसे विफल करता है कि जिसे इसे नहीं भी खरीदना है वो भी इसको जाने। 

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छोटे उद्योग वाले किस तरह से करें अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग: 
सबसे पहले ये मालूम होना चाहिए व्यक्ति को कि उसका प्रोडक्ट करता क्या है, उसकी वैल्यू क्या है या उसके लिए उसकी वैल्यू सबसे ज्यादा होगी, या दूसरी चीज जो इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। जैसे कि मान लीजिये मैं कोई चीज बेचना चाहता हूं या ये चीज जिसके इस्तेमाल की है, मुझे उसे ये बेचना है लेकिन ये मैं बेच रहा हूं तो मुझसे चीज के बारे में सब मालुम होना चाहिए कि मैं ये क्यों बेच रहा हूं मैं इसकी जगह कुछ और क्यूं नहीं बेच रहा हूं। या जो बेचने की कम्युनिकेशन स्किल है, उसमें कोर होने चाहिए क्योंकि आपके 10 विरोधी होंगे जो उसी ऑडियंस को कनेक्ट कर रहे हैं। तो उसमें आपका भाव होना चाहिए, जिससे वो व्यक्ति आप से ही जुड़े और लम्बे समय के लिए जुड़े। 

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