यह चार चरण कुछ इस प्रकार है
- सेंसोरिमोटर चरण: जन्म से 2 वर्ष
- प्रीऑपरेशनल स्टेज: उम्र 2 से 7
- कंक्रीट परिचालन चरण: उम्र 7 से 11
- औपचारिक परिचालन चरण: उम्र 12 और ऊपर
समाजिक जन्म के फौरन शुरू होता जो सीखने की प्रकिया है। बचपन की सबसे तीव्र और सबसे महत्वपूर्ण अवधि समाजीकरण है।
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पियाजे : रचना एवं आलोचनात्मक स्वरूप
जीन पियाजे (Jean Piaget)
जीन पियाजे (Jean Piaget) जिनका जन्म 9 अगस्त , 1896 को स्विटजरलैैंड के एक कस्बे में हुआ और जो 1980 तक जीवित रहे । पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की धारणा का विकास करते हुए किशोरावस्था के आरंभ में किसीभी कार्य को व्यवस्थित तर्कपूर्वक तथा नमनीय रूप से सम्पन्न करने तथा जटिल संबंधों को सरल करने पर बल दिया जाता है। उनमें प्रतीकों को विकसित करने की क्षमता आ जाती है। किशारों में संज्ञानात्मक विकास धीरे -धीरे
होता है। संज्ञान से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया से होता है, जिसमें संवेदना, प्रत्यक्षण , प्रतिमा , धारण , तर्कण जैसी मानसिक प्रक्रियाएं सम्मिलित होती हैं।
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जीन पियाजे की मनोवैज्ञानिक विचार धाराओं को विकासात्मक मनोविज्ञान के नाम से जाना जाता हैं। इस संदर्भ में उन्होनें कहा कि - मैं प्रशिक्षण से प्रकृतिवादी और जैविक वैज्ञानिक हूँ । जिनका मानना था कि बच्चे खेल प्रक्रिया के
माध्यम से सक्रिया रूप से सीखते हैं। पूर्व बाल्यावस्था को प्रायः खिलौनों की आयु कहा जाता है। उन्होनें बताया कि वयस्क की भूमिका बच्चे को सीखने में मदद करना व उपयुक्त सामग्री प्रदान करना होता है। जीन पियाजे दृारा
प्रतिपादित कार्यो में मानव विकास की अवस्थाएं उसका महत्वपूर्ण कार्य है। मानव विकास के परंपरागत सिद्धांतों को यदि हम अपने ध्यान में रखें तो कहा जा सकता है कि पारम्परिक विकास के तीन महत्वपूर्ण पहलू होते हैं-
1) जैविक परिपक्वता
2) भौतिक पर्यायवरण का अनुभव
3) सामाजिक पर्याावरण का अनुभव
जीन पियाजे ने 1920 के प्रारम्भ में संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया । पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण संप्रत्यय निम्नलिखित हैं-
* अनुकूलन (Adaption)
* साम्यधारण (Equilibration)
* संरक्षण (Conservation)
* संज्ञानात्मक संरचना (Assimilation)
* स्कीमा (Schema)
* विकेन्द्रण (Decentralization)
जीन पियाजे (Jean Piaget) के संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त
जीन पियाजे ( 1896 - 1980) एक प्रमुख स्विस( swiss) मनोवैज्ञानिक थे । जिनका प्रशिक्षण प्राणी विज्ञान में हुआ था । जीन पियाजे ने बालकों के संज्ञानात्मक विकास की व्याख्या करने के लिए चार अवस्था सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है।
1) संवेदी - पेशीय ( Sensorimotor stage)
2) प्राक्संक्रियात्मक अवस्था ( Preoperrational stage)
3) ठोस संक्रिया की अवस्था ( Concrete operational stage)
4) औपचारिक संक्रिया की अवस्था ( Formal operational stage)