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प्रांतीय सरकारों का हिस्सा रहे कांग्रेस नेताओं ने इसके विरोध में अपने पदों से इस्तीफा दे दिया. ब्रिटेन के लिए यह बात काफी महत्व रखती थी कि उसे युद्ध के लिए भारतीय समर्थन मिले, क्योंकि ब्रिटेन युद्ध के लिए भारतीय सैनिकों पर निर्भर था. उस वक़्त आजादी का आंदोलन भी जोरों पर चल रहा था. लंदन से ब्रिटिश सरकार ने चल रहे युद्ध में पूर्ण समर्थन के बदले में भारतीय नेताओं के साथ स्वशासन की संभावना पर चर्चा करने के लिए एक सदस्यीय मिशन के तहत लेबर पार्टी के मेम्बर सर स्टैफोर्ड क्रिप्स को भारत भेजा.
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कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
1. क्रिप्स एक वामपंथी राजनीतिज्ञ थे जो भारतीय स्वशासन (इंडियन सेल्फ़ रूल) के प्रति सहानुभूति रखते थे.
2. कांग्रेस के अलावा अन्य भारतीय दलों, जैसे हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग आदि युद्ध में अंग्रेजों को समर्थन देने के पक्ष में थे.
3. लेकिन ब्रिटिश सत्ता के लिए कांग्रेस का समर्थन हासिल करना महत्वपूर्ण था क्योंकि यह वह पार्टी थी जिसे अधिकतम जनता का समर्थन प्राप्त था.
4. यद्यपि क्रिप्स पूर्ण स्वशासन की पेशकश करने के इरादे से भारत पहुंचे थे. वायसराय, भारत के राज्य सचिव लियो एमरी, तथा यहाँ तक की ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने मिशन को नाकाम करने की कोशिश की. सन 1970 में जारी किए गए गोपनीय दस्तावेजों से पता चलता है कि ब्रिटिश प्रतिष्ठान ने मिशन के लिए अवमानना की थी और इसकी विफलता से राहत महसूस की थी.
5. विंस्टन चर्चिल का विचार था कि साम्राज्य की गैर-श्वेत प्रजा स्व-शासन के लिहाज़ से अक्षम थे.
6. 22 मार्च सन 1942 को दिल्ली पहुंचने के बाद क्रिप्स ने वायसराय से मुलाकात की. फिर उसके बाद उन्होंने भारतीय नेताओं से भी मुलाकात की. कहा जाता है कि निजी तौर पर, उन्होंने बाद के चरण में राष्ट्रमंडल छोड़ने और पूर्ण स्वतंत्रता के विकल्प के साथ स्व-शासन और प्रभुत्व की स्थिति का वादा भी किया था. उन्होंने लिनलिथगो को हटाने और तुरंत डोमिनियन का दर्जा देने की भी पेशकश की.
7. हालाँकि, सार्वजनिक रूप से, केवल अस्पष्ट प्रतिबद्धताएँ दी गईं, जैसे कि वायसराय की कार्यकारी परिषद में भारतीयों की संख्या बढ़ाना आदि. जबकि निकट भविष्य में स्वशासन की कोई गारंटी नहीं दी गई थी.
8. गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस पार्टी ने तब बातचीत बंद कर दी और युद्ध समर्थन के बदले शीघ्र स्वशासन की मांग की.
9. गांधी ने क्रिप्स के डोमिनियन स्टेटस के प्रस्ताव को "क्रेशिंग बैंक पर आहरित एक ''पोस्ट डेटेड चेक" के रूप में वर्णित किया.
10. क्रिप्स मिशन विफल रहा क्योंकि यह ब्रिटेन के इरादों (जो किसी भी मामले में ईमानदार नहीं थे) के बारे में कांग्रेस को विश्वास दिलाने में विफल रहा था. न ही भारतीय नेतृत्व ने ब्रिटेन के युद्ध के प्रयासों को समर्थन दिया. कुछ लोगों की निगाह में यह मिशन ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर अमेरिकी चिंताओं के ब्रिटिश तुष्टीकरण के अलावा और कुछ नहीं था.
11. उसी वर्ष, मिशन की विफलता के मद्देनजर कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया.
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निष्कर्ष -
क्रिप्स मिशन मार्च सन 1942 के अंत में ब्रिटिश सरकार द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में उनके प्रयासों के लिए पूर्ण भारतीय सहयोग और समर्थन हासिल करने का एक असफल प्रयास रहा था. मिशन का नेतृत्व ब्रिटेन में विंस्टन चर्चिल की गठबंधन सरकार में श्रम मंत्री सर रिचर्ड स्टैफोर्ड क्रिप्स ने किया था. इसके अंतर्गत द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की तरफ से भारतीय सैनिकों के लड़ने के एवज में देश को स्वाधीनता देने का प्रस्ताव दिया गया था. क्रिप्स मिशन का दीर्घकालिक महत्व वास्तव में युद्ध के बाद हीं स्पष्ट हो गया, क्योंकि सैनिकों को हटा दिया गया और घर वापस भेज दिया गया. यहां तक कि चर्चिल ने भी माना कि क्रिप्स ने जो स्वतंत्रता की पेशकश की थी, उसे वापस नहीं लिया जा सकता है, लेकिन युद्ध के अंत तक, चर्चिल सत्ता से बाहर हो गए थे और इसलिए वह कुछ भी नहीं कर सकते थे. भारतीयों का यह विश्वास कि ब्रिटिश जल्द हीं भारत छोड़ देंगे, उस तत्परता में परिलक्षित होता है जिसके साथ कांग्रेस के राजनेता सन 1945-1946 के चुनावों में खड़े हुए और प्रांतीय सरकार बनाई थी. बाद में ब्रिटेन की नई लेबर सरकार ने भारत को स्वतंत्रता दी थी.जाने क्या था खिलाफ़त आन्दोलन – कारण और परिणाम
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