पोषण प्राणियों का एक विशिष्ट लक्षण है। प्राणियों में बहुत सारे कार्य सम्पन्न रहते हैं जिनके लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है।
1) कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate) - यह कार्बन , हाइड्रोजन एवं आँक्सीजन का अनुपात जल के हाइड्रोजन एवं आँक्सीजन के अनुपात के अनुरूप होता है। इसका सामान्य सूत्र (CH20)n है। सामान्य रूप से ये भोजन में शर्कराओं एवं अघुलनशील मण्डों (Starches) के रूप में उपस्थित होते हैं।
कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख कार्य
1) कुछ विशेष जन्तुओं के बाहृा कंकाल (Exoskeleton) का निर्माण ।
2) न्यूक्लिक अम्लों (Nucleic acids) का निर्माण।
3) शरीर में भोजन संचय की तरह कार्य करना।
11) वसाएँ (Fats) - इसके मुख्य स्रोत - मक्खन , घी , तेल , मूँगफली इत्यादि हैं। हाइड्रोजन एवं आँक्सीजन की ही यौगिक होती है, किन्तु रासायनिक रूप से कार्बोहाइड्रेट से भिन्न होती है। ये जल में अघुलनशील एवं कार्बनिक विलायकों , जैसे -बेंजीन, ऐसीटोन , ऐल्कोहाॅल , ईथर ,क्लोरोफाॅर्म इत्यादि में घुलनशील होती है। वसा के एक अणु का निर्माण ग्लिसराॅल के एक तथा वसीय अम्लों के तीन अणुओं के इंस्टरबन्ध दृारा परस्पर जुड़ने से होता है। ये कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा दोगुनी से अधिक ऊर्जा मुक्त करती है। वसा का संचय विशिष्ट वसीय ऊतकों (Adipose tissues) में होता है।
वसा के प्रमुख कार्य
1) प्रति ग्राम वसा से 9 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
2) प्लाज्मा झिल्ली के निर्माण में सहायक होती है।
3) शरीर के विभिन्न अंगों को चोट से बचाती है।
111) प्रोटीन्स (Proteins)- इसके मुख्य स्रोत - दूध , अण्डा , मछली , मांस ,दाल ,सोयाबीन एवं फली हैं। प्रोटीन में कार्बन , हाइड्रोजन , एवं आँक्सीजन के अतिरिक्त नाइट्रोजन, फाॅस्फोरस , गन्धक एवं आयोडीन भी होते हैं। पूर्णरूप से विखणिडत होने के बाद इसके अणु सरल अमीनो अम्लों के अणुओं के रूप में होते हैं। अतः प्रोटीन अमीनो अम्लों की यौगिक होती है। बीस प्रकार के अमीनो अम्ल प्रोटीन्स की इकाइयाँ होती हैं।
प्रोटीन के मुख्य कार्य
1) शारीरिक वृदृि में सहायक होता है।
2) एण्टीबाॅडीज के निर्माण में सहायक होता है।
3) एंजाइम एवं हाॅर्मोन के निर्माण में सहायक होता है।
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1V) विटामिन (Vitamins)- ये बहुत ही अल्प मात्रा में जन्तु के शरीर में होते है जो उपापचय को नियन्त्रित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करते हैं। हालाँकि विटामिन से ऊर्जा की प्राप्ति नहीं होती है, लेकिन इनकी कमी उपापचय को त्रुटिपूर्ण बनाकर शरीर को रोगयुक्त कर देता है।