भारतीय कर व्यवस्था
भारत में वैट व्यवस्था को 1अप्रैल,2005 से लागू किया गया।
करो के प्रकार –
(क). प्रत्यक्ष कर (Direct tax)
केंद्र सरकार- आयकर (व्यक्तियों, अविभाजित हिंदू परिवारों तथा संस्थाओं के आय पर), निगम कर (कंपनियों के आय पर कर), धन कर, एस्टेट ड्यूटी(सम्पदा शुल्क), उपहार कर, व्यय कर, व्याज कर।
राज्य सरकारें- विक्री कर/व्यापार कर, डीजल/पेट्रोल पर विक्री कर, स्टांप एवं पंजीयन शुल्क, राज्य उत्पाद शुल्क, वाहनों पर कर, वस्तुओं एवं यात्रियों पर परिवहन कर, विद्युत पर कर एवं शुल्क, गन्ने की खरीद पर शुल्क तथा उपकर, प्रवेश कर, विज्ञापन कर, शिक्षा उपकर, कच्चे जुट पर कर, सट्टेबाजी पर कर।
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(ख.) सेवा कर(Service Tax)
सेवाओं पर कर आरोपित करने का अधिकार का उल्लेख न तो संविधान की सातवी अनुसूची की राज्य सूची में है, नही समवर्ती सूची में, तथापि संघ सूची में प्रविष्टि 97 को केंद्र सरकार को इन 'सूचियों का उल्लेख नहीं किए गए कर' को लगाने तथा संग्रह करने का अधिकार देता है, के आधार पर संघीय विधायिका सेवाओं पर कर लगाने में समर्थ है।
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(ग.)वित्त आयोग (Finance Commission)
केंद्र से राज्यों को वित्तीय हस्तांतरण के लिए दिशा निर्देश सुझाने हेतु वित्त आयोग का गठन किया जाता है।
संविधान का अनुच्छेद 280 में यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक पांच वर्ष के बाद या आवश्यकता पड़ने पर उससे पूर्व एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा, जिसमे अध्यक्ष के अतरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे।
अनुच्छेद 280 के अनुसार आयोग का कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को निम्नलिखित के संबंध में अपनी संस्तुतियां दे -
- केंद्र तथा राज्यों ने बीच विभाजनीय करों से प्राप्त शुद्ध राजस्व का वितरण तथा इसमें विभिन्न राज्यों का हिस्सा।
- भारत की संचित निधि में से राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों के लिए सिद्धांत।
- सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किया गया अन्य कोई मामला।