संवेग के बारे में मुख्य जानकारी Information About Impulse

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Fri, 17 Sep 2021 11:33 AM IST

Source: NA

 संज्ञात्मक क्षेत्र ( ब्लूम , 1956) में ज्ञान तथा बौद्धिक कौशलों का विकास शामिल किया जाता है । इसमें विशेष तथ्यों का पुन: स्मरण या पहचान , प्रक्रियागत स्वरूप एवं परिकल्पनाएं शामिल हैं जो बौद्धिक क्षमताओं तथा कौशलों के विकास में मदद करती हैं।
इसकी कुल छः मुख्य श्रेणियां हैं , जो सरलतम से आरंभ होकर सबसे जटिल तक के क्रम में नीचे सूचीबद्ध हैं -
1) ज्ञान  2) अवभोध  3) ज्ञानोपयोग  4) विश्लेषण  5) संश्लेषण और  6) मूल्यांकन । इन श्रेणियों को कठिनाइयों की कोटियों के रूप में सोचा जा सकता है । यानि , इसके पहले कि दूसरा सिखा जाए , पहले पर महारथ हासिल करनी होगी । संज्ञान (Cognition) कुछ महत्वपूर्ण मानसिक प्रक्रियाओं का सामूहिक नाम हैं, जिनमें ध्यान , स्मरण , निर्णय लेना , भाषा - निपुणता और समस्याएं हल करना शामिल है। संज्ञान का अध्ययन मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र , भाषा विज्ञान , कंप्यूटर विज्ञान और विज्ञान की कई अन्य शाखाओं के लिए जरूरी है। मोटे तौर पर संज्ञान दुनिया से जानकारी लेकर फिर उसके बारे में अवधारणाएं बनाकर उसे समझने की प्रक्रिया को भी कहा जा सकता है । साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

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संवेग ( Impulse) 

संवेग और भावना शब्दों को कभी कभी पर्याय ( Synonyms) के तौर पर प्रयोग किया जाता है । संकीर्णतर अर्थ में संवेग को किसी अधिक स्थायी भावना की प्रत्यक्ष अल्पकालिक अवस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । उदाहरण के लिए , किसी मनुष्य के एक स्थायी गुण के तौर पर संगीत के प्रति प्रेम की भावना संवेग नहीं है , किंतु वही मनुष्य जब किसी कंसर्ट में अच्छा संगीत सुनते हुए जो आनंद और उल्लास अनुभव करता है , उस आनंद और उल्लास की अवस्था संवेग है । वही भावना , क्षोभ ( Indignation) के नकारात्मक संवेग के रूप में भी अनुभव की जा सकती है , जब अच्छे संगीत को बुरे ढंग से पेश किया जाता है। एक भावना के तौर पर , अर्थात निश्चित वस्तुओं , उनके संयोजनों अथवा महत्वपूर्ण स्थितियों के प्रति एक निश्चित , विशिष्ट रवैया ( Attitute) के तौर पर भय को विभिन्न संवेगात्मक प्रक्रियाओं में अनुभव किया जा सकता है। कभी मनुष्य डरावनी चीज को देख कर भाग जाता है , कभी वह जहां का तहां जड़ हो जाता है। कुछ मामलों में , संवेगो में ओजस्विता होती है, वे मनुष्य को कार्य करने, निर्भीक बातें कहने को प्रेरित करती हैं और उसकी शक्ति बढ़ती हैं। ऐसे संवेगो को सबल संवेग ( Strong Impulse) कहा जाता है। अति प्रसन्न आदमी मुश्किल में पड़े मित्र की मदद के लिए जमीन आसमान  एक करने को तैयार रहता है। सबल संवेग मनुष्य को कार्य करने  को प्रेरित करता है। ऐसा मनुष्य निष्क्रिय नहीं बैठ सकता। इनके विपरीत किस्म के संवेग , जिन्हें दुर्बल संवेग ( weak Impulse) कहा जाता है। जो मनुष्य को क्षीण बनाते हैं और उसे उदासीनता , निराश तथा निष्क्रियता के गर्त में धकेलते हैं। भय से उसके हाथ - पांव जवाब दे सकते हैं। हर संवेग को प्रखरता के क्रम में बढ़ती हुई अवथाओं का सोपान कहा जाता सकता है, जैसे सामान्य संतुष्टि, हर्ष, आहाद, उल्लास , आदि अथवा संकोच , घबराहट , लज्जा , अपराध - बोध , आदि , अथवा नाराजगी , परेशानी , कष्ट , दुख । मैक्डूअल ने 14 मूल प्रवृत्तियों का उल्लेख किया और कहा कि प्रत्येक मूल प्रवृति के साथ एक संवेग जुड़ा रहता है उसने स्पष्ट किया है संवेग जन्मजात प्रवृति का क्रियाशील स्वरूप होता है ।
 
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