भाषा अभिव्यक्ति का एक समर्थ साधन है, यह मुख से उच्चारित जोन वाले शब्दों व वाक्यों आदि का वह समूह जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। प्रायः भाषा को लिखित रूप में व्यक्त करने के लिए लिपियों की सहायता लेनी पड़ती है।
लिपि - वर्णों का उच्चारण ध्वनियों से होता है। इन मौखिक ध्वनियों को जिन निश्चित चिन्हों के माध्यम से लिखा जाता है, उसे 'लिपि' कहते है। लिपि भाषा को लिखने का रीति है।
अंग्रेजी भाषा की लिपि रोमन और उर्दू भाषा की लिपि फारसी है। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है, और दो या दो से अधिक भाषाओं का एक लिपि हो सकती है!
उदाहरणार्थ –पंजाबी भाषा गुरुमुखी तथा शाहमुखी दोनों लिपियों में लिखी जाती है।
जबकि हिंदी,मराठी,संस्कृत नेपाली इत्यादि देवनागरी लिपी में ही लिखी जाती है।
उच्चतर जानवरों में आवाज से संकेत देने के कुछ सरल रूप पाए जाते है। मुर्गियां कई दर्जन ध्वनियां पैदा करती है, जो भय या आशंका के, चूजो को पुकारने या भोजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति के संकेत है। डॉल्फिन जैसे अत्यंत विकसित स्तनपाइयों में कई सौ ध्वनि संकेत है। परंतु यह सच्चे अर्थों में भाषा नही है।जानवरों का संकेत देना संवेदनों पर आधारित है।
इन्हे "प्रथम संकेत प्रणाली" की संज्ञा दी जाती है।
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मानवीय भाषा "द्वितीय संकेत प्राणली" है। इस संकेत प्रणाली का प्रमुख विभेदक लक्षण यह है- कि पारिस्थितिक संकेतों शब्दों तथा उनसे बने वाक्यों के आधार पर मनुष्य के लिए सहजवृतियों से परे निकलना और ज्ञान को असीमित परिणाम और विविधता में विकसित करना संभव हो जाता है।
संसार के सभी बातों की भांति भाषा का भी मनुष्य की आदिम अवस्था के अव्यक्त नाद(Sound) से अब तक बराबर विकास होता आया है, और इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। भारतीय आर्यों की वैदिक भाषा से संस्कृत और प्राकृतों का, प्राकृतों से अपभ्रशों का और अपभ्रंशों से आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है।
भाषा क्या है –
भाषा मूलतः ध्वनि संकेतों की एक व्यवस्था है, यह मानव मुख से निकली अभिव्यक्ति है, यह विचारों के आदान प्रदान का एक सामाजिक साधन है और इसके शब्दों के अर्थ प्रायः रूढ़ होते है। भाषा अभिव्यक्ति का एक ऐसा समर्थ साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों और विचारों को दूसरों पर प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार जान सकता है।
अतः हम कह सकते है कि भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त ध्वनि संकेतों की व्यवस्था भाषा कहलाती है।
मानव समाज के लिए भाषा बहुत महत्पूर्ण तत्व है। इसके माध्यम से ही मनुष्य विचारों और भावों का आदान प्रदान करता है।
भाषा संप्रेषण का मुख्य साधन होती है।
वैसे तो संप्रेषण संकेतों के माध्यम से भी हो सकता है लेकिन सांकेतिक क्रिया कलापों को भाषा नही माना जा सकता है।
भाषा शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की भाष् या भाष् धातु से होती है। जिसका अर्थ होता है "बोलना या कहना" अर्थात भाषा वह है जिसे बोला जाए ।
भाषा को हमने बोलकर प्राप्त किया है, तथा बाद में इसे लिपिबद्ध किया गया। इस प्रकार भाषा व्यक्त नाद(sound) की वह समष्टि है जिसके द्वारा किसी समाज या देश के लोग अपने मनोगत भाव तथा विचार प्रकट करते है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान- प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा आभ्यंतर अभिव्यक्ति का वह सर्वाधिक विश्वशनीय माध्यम है। यही नहीं, वह हमारे लिए आभ्यंतर के निर्माण, विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का भी साधन है। भाषा के बिना मनुष्य सर्वथा अपूर्ण है और अपने इतिहास तथा परंपरा से विच्छिन्न है।