राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा रूपरेखा 2005
राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा रूपरेखा 2005 भारत की स्कूली शिक्षा के संदर्भ मे शिक्षकों, शिक्षक - शिक्षकों एवं शिक्षा के काम से जुड़े अन्य व्यक्तियों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। भारत में अभी तक सिर्फ चार राष्ट्रीय पाठ्य चर्चा दस्तावेज बने है। पहला 1975, दूसरा 1988 का है, तीसरा 2000 और चौथा 2005 का है। 1975 से पहले के दस्तावेजों को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय दस्तावेज नहीं कहा जा सकता। क्योंकि उस वक्त शिक्षा, राज्य सूची का विषय था।
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उन्हें एक सलाहकार दस्तावेज के रूप में जरूर प्रस्तुत किया जाता था लेकिन वे शिक्षा नीति के तहत नहीं थे। एनसीएफ 2005 का 22 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। यह विद्यालयी शिक्षा का अब तक का नवीनतम राष्ट्रीय दस्तावेज है। इसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर प्रो यशपाल की अध्यक्षता में देश। के चुने हुए 23 शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों, विषय विशेषज्ञों व अध्यापकों के समूह ने शिखा की नई चुनौतियों से निपटने हेतु लगभग दो वर्ष तक चली लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार किया।Current Affairs Ebook Free PDF: डाउनलोड करें | General Knowledge Ebook Free PDF: डाउनलोड करें |
राष्ट्रीय पाठ्य चर्चा की रूप रेखा के अनुसार " आदिकाल से प्रकृति के विस्मय से अनुभूति मनुष्य की महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया रही है। अपने भौतिक और जैविक पर्यावरण का ध्यान से निरीक्षण करना, उनमें अर्थपूर्ण संयोजनों और संबंधों को खोजना, प्रकृति से काम लेने के लिए औजार बनाना और संसार को समझने के लिए अवधारणाएं गढ़ना आदि सम्मिलित है। इन्हीं मानवीय प्रयासों की परिणित आधुनिक विज्ञान में हुई।" एनसीएफ़ - 2005 में दिए गए वर्णन के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति आपस में संबंधित कई गतिविधियों को मिलाकर बनती हैं जैसे निरीक्षण। इसके द्वारा देखे गए तथ्यों में समानताओं और समरूपी संरचनाओं की खोज करना, अवधारणाएं बनाना, स्थितियों के गुणात्मक और गणितीय प्रारूप गढ़ना, तार्किक ढंग से उनके निष्कर्ष निकालना, प्रेक्षणों तथा नियंत्रित प्रयोगों के द्वारा सिद्धांतों के सच झूठ की पुष्टि करना, और इस तरह अंत में प्राकृतिक संसार पर लागू होने वाले सिद्धांतों, धारणाओं तथा नियमों पर पहुंचना है।
केंद्रीय सरकार द्वारा एनसीईआरटी के नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क अर्थात् राष्ट्रीय पाठ्यचर्चा रूपरेखा 2005 की अनुशंसा के बाद देश भर में एक समान शिक्षा प्रणाली लागू करने की कवायद विभिन्न राज्यों ने शुरू की है। राजस्थान में भी राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में 2010 के शिक्षा सत्र में लागू किया गया। इसके प्रथम चरण में राज्य में कक्षा नौवीं और ग्यारहवीं में एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों लागू की गई। एन. सी. एफ 2005 के प्रकाश में संपूर्ण पाठ्यक्रम संशोधित किया गया। इस पाठ्यक्रम में यंत्रवत रट लेने वाली रूढ़िगत ज्ञानार्जन प्रक्रिया के स्थान पर विद्यार्थी केंद्रित अधिगम को महत्व दिया गया। इससे पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक विकास एवं अभ्यास पुस्तिकाओं में गुणवत्ता संबंधी आयामों में परिवर्तन हुआ है।
विज्ञान शिक्षण को गतिविधियों के माध्यम से अभिरुचि पूर्ण बनाया जाना चाहिए। जैसे जैसे संचार को पहचानने की उसकी क्षमता बढ़े, वैसे वैसे वह उससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों और सिद्धांतों को भी जाने और उनके विभिन्न उपयोग से वैज्ञानिक का जन्म होता है और उसकी सत्यता की पुष्टि भी होती हैं गतिविधि वा प्रोजेक्ट के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा से बच्चों में गणित स्तर पर गणित कॉर्नर जरूर स्थापित करना चाहिए, जिसे चरणबद्ध तरीके से स्थापित किया जा सकता है। सामाजिक विज्ञान का शिक्षण रटने रटाने के स्थान पर अन्वेषण एवं गतिविधियों के माध्यम से रूचिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए। एन सी एफ का सुझाव है कि विज्ञान और सामाजिक विज्ञान को मिलाकर अधिक व्यापक पर्यावरण अध्ययन विकसित करने का प्रयास जारी रहना चाहिए। इसका एक अन्य महत्वपूर्ण हिस्सा स्वास्थ्य भी होना चाहिए। बच्चों की घर की भाषा विद्यालय में भी उनकी समझ का माध्यम बने, ताकि बच्चे रटने की बजाय समझकर अधिगम कर सकें। अतः शिक्षा विद्यार्थियों के लिए बोझ न बनकर एक आनंदमयी अनुभव बनें, जिससे अपने जीवन के साथ साथ राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सके।