Source: Verywell Mind
अल्बर्ट बांडुरा को सामाजिक अधिगम सिद्धांत के प्रवर्तक / जन्मदाता के रूप में जाना जाता है, जिसे 1977 में प्रतिपादित किया था। तथा उन्होंने सामाजिक अधिगम सिद्धांत को सामाजिक संज्ञानात्मक सिद्धांत का नाम दिया है। सीखने के सामाजिक अधिगम सिद्धांत के अनुसार लोग प्रेक्षण , नकल और मॉडलिंग के माध्यम से , एक दूसरे से सीखते हैं। सामाजिक अधिगम सिद्धांत लोगों को एक सामाजिक संदर्भ में अपना दृष्टिकोण बताता है। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।Current Affairs Ebook Free PDF: डाउनलोड करें | General Knowledge Ebook Free PDF: डाउनलोड करें |
अक्सर यह सामाजिक सिद्धांत व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक सीखने के सिद्धांतों के बीच एक पुल का काम करता है । क्यों कि इसमें ध्यान , स्मृति और प्रेरणा शामिल हैं। इसमें पर्यावरण में अवलोकन व अनुकरण के माध्यम से बच्चों को सामाजिक व्यवहार करने व सीखने पर बल दिया गया है। उनका बोबो गुडिया (1961) का प्रयोग विश्व प्रसिद्ध है। इस प्रकार हम हमारे आसपास रहने वाले के व्यवहारों का निरीक्षण करके उनका अनुकरण करते हैं और प्रेक्षण द्वारा सीखने की प्रक्रिया को पूरा करते है । बांडुरा ने स्पष्ट किया है कि मानव क्रिया में तीन कारकों का परस्पर प्रभाव हमेशा पढ़ता है। ये कारक हैं - (1) बाहृा वातावरण ( External Environment) (2) संज्ञानात्मक एवं आंतरिक घटनाएं ( Corgnitive and Intenal events) और (3) व्यवहार (Behaviour) । बांडुरा के अनुसार ये तीनों एक दूसरे पर निर्भर होते हैं एवं एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
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