बेरोजगारी का आशय लोगो की उस स्थिति से है। जिसमे वे प्रचलित मजदूरी दरों पर काम करने के इच्छुक तो होते है, परंतु उन्हें काम नही प्राप्त होता है।
भारत में शहरों की तुलना में गांवों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में तथा अशिक्षित लोगों की अपेक्षा शिक्षित लोगों में बेरोजगारी अधिक होती है।
बेरोजगारी के विभिन्न स्वरूप-
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संरचनात्मक बेरोजगारी(Structural unemployment) - औधोगिक जगत में संकुचन एवं विस्तार जैसे संरचनात्मक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते है।
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अदृश्य बेरोजगारी (Disguised unemployment)- इस प्रकार की बेरोजगारी में उत्पादन कार्य में जरूरत से अधिक श्रमिक लगे होते है। फलतः उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है। सामान्यतः कृषि में ऐसी बेरोजगारी अधिकता पाई जाती है।
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खुली बेरोजगारी(Open unemployment) - बिना काम काज के पड़े रहने वाले श्रमिकों को खुली बेरोजगारी में रखा जाता है। शिक्षित और साधारण बेरोजगार इसमें शामिल है।
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घर्षणात्मक बेरोजगारी( Frictional unemployment) - बाजार की दशाओं में परिवर्तन होने से उत्पन्न बेरोजगारी को घर्षणात्मक बेरोजगारी कहा जाता है।
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मौसमी बेरोजगारी(Seasonal unemployment) -किसी विशेष मौसम या अवधि प्रतिवर्ष उत्पन्न होने वाली बेरोजगारी को इसमें सम्मिलित किया जाता है।
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स्वैच्छिक बेरोजगारी (Voluntary unemployment) - इस प्रकार की बेरोजगारी तब पाई जाती है। जब कार्यकारी जनसंख्या का एक अंश या तो रोजगार में दिलजस्पी ही नहीं रखता या प्रचलित मजदूरी दरों से अधिक दरों पर काम करने के लिए तैयार होता है।
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अनैच्छिक बेरोजगारी(Involuntary unemployment) - जब लोग मजदूरी की प्रचलित दरों पर भी काम करने के लिए तैयार हो और उन्हे काम नही मिले तो उसे अनैच्छिक बेरोजगारी कहते है।
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अल्प रोजगार(Under unemployment) - यह ऐसी स्थिति है जिसमे श्रमिकों का काम तो मिलता है,परंतु वह उसकी आवश्यकता और क्षमता से कम होता है।
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भारत में बेरोजगारी के कारण
भारत में बेरोजगारी के निम्न प्रमुख कारण हैं –
i). मंद विकास गति
ii). उच्च जनसंख्या वृद्धि दर
iii). श्रम प्रधान तकनीक की तुलना में पूंजी प्रधान तकनीक को बढ़ावा
iv). प्राकृतिक संसाधनों असमान वितरण
v). लघु एवं कुटीर उद्योगों का अपर्याप्त विकास
vi).व्यावसायिक शिक्षा को कम महत्व दिया जाना।