मनोविज्ञान का अर्थ व महत्व
(Meaning, Area, and Importance of Psychology)
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डेकार्ट (1596- 1650) ने मनुष्य तथा पशुओं में भेद करते हुए बताया कि मनुष्यों में आत्म होती है जबकि पशु केवल मशीन की भांति काम करते है। डेकार्ट के मतानुसार मनुष्य के कुछ विचार ऐसे होते है जिन्हें जन्मजात कहा जा सकता है। उनका अनुभव से कोई संबंध नहीं होता है। ह्यूम (1711-1776) ने मुख्य रूप से विचार तथा अनुमान में भेद करते हुए कहा कि विचारों की तुलना में अनुमान अधिक उत्तेजनापूर्ण तथा प्रभावशाली होते हैं। विचारों को अनुमान की प्रतिलिपि माना जा सकता है। ह्यूम ने कार्य कारण सिद्धांत के विषय में अपने विचार स्पष्ट करते हुए आधुनिक मनोवैज्ञानिक को वैज्ञानिक पद्धति के निकट पहुंचाने में उल्लेखनीय सहायता प्रदान की। हार्टले (1705- 1757) का नाम दैहिक मनोवैज्ञानिक दार्शनिकों में रखा जा सकता है। उनके अनुसार स्नायु तंतुओं में हुए कंपन के आधार पर संवेदना होती है। मस्तिष्क और पदार्थ के परस्पर संबध के विषय में लाके का कथन था कि पदार्थ द्वारा मस्तिष्क का बोध होता है। ला मेट्री (1709- 1751) ने कहा कि विचार की उत्पत्ति मस्तिष्क तथा स्नायुमंडल के परस्पर प्रभाव के फलस्वरूप होती है। उनका कहना था कि शरीर तथा मस्तिष्क की भांति आत्म भी नाशवान है। आधुनिक मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियादी डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुख प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। हरबार्ट (1776- 1841) ने मनोविज्ञान में प्रेरकों की बुनियाद डालते हुए ला मेट्री ने बताया कि सुख प्राप्ति ही जीवन का चरम लक्ष्य है। हरबार्ट (1776-1841) ने मनोविज्ञान को एक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनके मतानुसार मनोविज्ञान अनुभवबाद पर आधारित एक तात्विक, मात्रात्मक तथा विश्लेषणात्मक विज्ञान है। उन्होंने मनोविज्ञान को तात्विक के स्थान पर भौतिक आधार प्रदान किया। जेम्स मिल (1773-1836) तथा बाद में उनके पुत्र जान स्टुअर्ट मिल (1806- 1873) ने मानसिक रसायनी का विकास किया। इन दोनों विद्वानों ने साहचर्यवाद की प्रवृत्ति को औपचारिक रूप प्रदान किया और वूंट के लिए एक उपयुक्त पृष्ठभूमि तैयार को। विल्हेम ने 1979 में मनोवैज्ञानिक को पहली प्रयोगशाला स्थापित की, उसके बाद मनोवैज्ञानिक एक स्वतंत्र विज्ञान का दर्जा पा सकने में समर्थ हो सका। वैज्ञानिक मनोविज्ञान 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से आरंभ हुआ माना जाता है।