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कृषि मूल्य नीति -
कृषि मूल्य नीति का किसी भी देश के आर्थिक विकास में अग्रणी भूमिका होती है. किसानों को कृषि कार्य हेतु उत्पादन उन्मुख निवेश और कृषि प्रौद्योगिकी के लिए प्रेरित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने का यह एक महत्वपूर्ण साधन है. इसमें कोई सन्देह नहीं कि कृषि कीमतों में तीव्र या प्रचंड उतार-चढ़ाव के परिणाम कभी किसान और कभी उपभोक्ता के लिए हानिकारक होते हैं. अतः भारत जैसे विकासशील देश का हित इसी में है, कि किसान और उपभोक्ता दोनों परेशानी से बचे रहें इसलिए यहाँ फसलों और अनाजों के मूल्य बहुत सोच समझकर तय किए जाने की आवश्यकता है.
कृषि मूल्य नीति, प्रभाव -
भारत जैसे विकासशील देश में कृषि मूल्य नीति के बड़े दूरगामी प्रभाव निकल कर आते हैं यह नीति किसानों की आय और उपभोक्ताओं की खपत दोनों को प्रभावित करती हैं. (भारत सरकार हर साल प्रमुख कृषि वस्तुओं के लिए खरीद या समर्थन मूल्य की घोषणा करती है और सार्वजनिक एजेंसियों के माध्यम से कृषि उत्पादों के खरीद कार्यों का आयोजन करती है.) उदाहरण के तौर पर किसी साल किसी विशेष फसल की कीमत में भारी गिरावट होती है तो इससे न केवल किसानों की आय में कमी आएगी बल्कि आने वाले समय में किसान को उस फसल की खेती करने की इच्छा भी घट जाएगी. इससे यह होगा कि यदि वह फसल लोगों का (उपभोक्ताओं) मुख्य खाद्य पदार्थ है, तो फसल की मांग अधिक रहेगी परन्तु आपूर्ति कम हो जाएगी. बफर स्टॉक नहीं होने की स्थिति में सरकार को मजबूरन दूसरे देशों से फसल के आयात को बाध्य होना पड़ेगा. नतीज़ा विशेष फसल की कीमतों में भारी वृद्धि और इसकी वजह से उपभोक्ता को भारी नुकसान. इस प्रकार यदि किसी विशेष फसल की कीमतों में लगातार वृद्धि होती रहती है, तो निश्चित रूप से इसका देश की अर्थव्यवस्था के क्षेत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है.
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कृषि मूल्य नीति के उद्देश्य -
- राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में कृषि के योगदान के आधार पर कृषि मूल्य नीति के उद्देश्य अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते हैं. आम तौर पर, विकसित देशों में, कृषि मूल्य नीति का प्रमुख उद्देश्य कृषि आय में भारी गिरावट को रोकना है. जबकि विकासशील अर्थव्यवस्था में इसका प्रमुख उद्देश्य कृषि उत्पादनों में अधिक से अधिक वृद्धि करना है.
- कृषि मूल्य नीति का सबसे प्रमुख उद्देश्य खाद्यान्न और गैर-खाद्यान्नों की कीमतों और कृषि वस्तुओं के बीच उचित संबंध सुनिश्चित करना है ताकि अर्थव्यवस्था के इन दो क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तें एक दूसरे के खिलाफ न बदले.
- कृषि मूल्य नीति को अधिकतम और न्यूनतम सीमा के भीतर के उतार-चढ़ाव पर कड़ी नजर रखनी चाहिए, ताकि उत्पादक (किसान) और उपभोक्ता के हितों के बीच संतुलन बहाल रहे.
- कृषि मूल्य नीति ऐसी होनी चाहिए कि प्रतिस्पर्धी फसलों की कीमतों के बीच संतुलन बना रहे ताकि विभिन्न वस्तुओं के संबंध में उत्पादन लक्ष्यों को उसकी मांग के अनुसार पूरा किया जा सके.
- कृषि मूल्य नीति का एक प्रमुख उद्देश्य मौसमी उतार-चढ़ाव और इसकी वजह से मूल्य वृद्धि को न्यूनतम सीमा तक नियंत्रित करना है.
- कृषि मूल्य नीति का लक्ष्य देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच मूल्य का अधिक एकीकरण लाना भी होना चाहिए, ताकि अधिशेष योग्य मार्केटिंग (विपणन) का नियमित प्रवाह बना रहे और कृषि उत्पादों के निर्यात को नियमित रूप से प्रोत्साहित किया जा सके.
- कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य देश में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक परिव्यय को बढ़ाना भी होना चाहिए. और इसके लिए सामान्य मूल्य स्तर को स्थिर करना आवश्यक होगा.
- इसका सबसे महती और जरुरी उद्देश्य है उत्पादन में वृद्धि.
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कृषि मूल्य नीति के फायदे -
- फसलों के अधिक उत्पादन की स्थिति में कीमत में गिरावट को रोकने के लिए.
- बाजार में कीमत गिरने की स्थिति में किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करके उनके हितों की रक्षा करना.
- घरेलू खपत की आवश्यकता को पूरा करने का प्रयास.
- सभी कृषि उत्पादों के मूल्य में स्थिरता प्रदान करने के लिए.
- कृषि वस्तुओं और कृषि विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों के बीच उचित संतुलन सुनिश्चित करने के लिए.
- इससे देश के दो अलग अलग क्षेत्रों या पूरे देश के बीच फसल के मूल्य अंतर को दूर होंगे.
- कृषि उत्पादों के उत्पादन और निर्यात में वृद्धि होगी.
- पूरे देश में विभिन्न उद्योगों को उचित मूल्य पर कच्चा माल उपलब्ध कराना.
- इससे एक तरफ जहाँ किसानों की आय बढ़ाने के अवसर पैदा किए जा रहे हैं दूसरी तरफ देश के गरीबों को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. इससे देश में एक अलग निर्बल विनियोजन की समस्या पैदा होना स्वाभाविक है.
- उच्च उत्पाद कीमतों के माध्यम से किसानों को सब्सिडी देना एक अशक्त तरीका है क्योंकि इससे उपभोक्ता को उच्च कीमत चुकाने का दण्ड मिलता है. साथ हीं इसका यह मतलब है कि बड़े किसानों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, यानि कि बड़े किसान जो वसे भी अमीर और सक्षम हैं उन्हें जरूरत से ज्यादा मिलेगा जबकि छोटे किसान जो हमेशा संघर्ष की स्थिति में हैं, अभी भी उसी स्थिति में रहेंगे.
- किसान अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारी मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करते हैं लेकिन यह उन लोगों के लिए समस्या पैदा करता है जिन्हें उत्पादन में इस वृद्धि से लाभ नहीं मिलता है.
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भारत की अर्थ व्यवस्था में कृषि के योगदान की कमी -
भारत की अर्थ व्यवस्था में कृषि के योगदान की कमी का एक कारण विकास भी है. जैसा कि हम जानते हैं जैसे जैसे कोई देश विकास करता है उसकी अर्थ व्यवस्था में कृषि का योगदान कम होता जाता है. यह भी एक कारण है कि भारत के अन्य क्षेत्रों के विकास के कारण यहाँ की अर्थव्यस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार घटी है. एक नज़र निम्नलिखित आंकड़े पर डालें -
कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा (%में) -
साल | 1951 | 1965 | 1976 | 2011 | 2012 | 2013 | 2014 | 2015 | 2016 |
कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा (%में) | 52.2 | 43.6 | 37.4 | 18.9 | 18.9 | 18.7 | 18.6 | 14 | 14 |