Revolt of 1857 Beginning: क्या आप जानते हैं 1857 के विद्रोह की शुरुआत कैसे हुई थी

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Fri, 18 Feb 2022 02:09 PM IST

Source: social media

1857 का विद्रोह अंग्रेजों के औपनिवेशिक अत्याचार के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत थी. 1857 के विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह, आदि नामों से भी जाना जाता है. यह विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में सिपोई म्युटिनी के रूप में शुरू हुआ था. ये ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ बंगाल प्रेसीडेंसी में सिपाहियों द्वारा शुरू किया गया था. स्वतंत्रता के इस युद्ध ने आगे चलकर भारत पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत किया. इसके बाद, गवर्नर-जनरल के नाम से जाने जाने वाले प्रतिनिधियों के माध्यम से भारत पर सीधे ब्रिटिश सरकार का शासन शुरू हो गया था. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण –

इस विद्रोह का तत्कालिक कारण 'एनफील्ड' राइफल के इस्तेमाल की शुरूआत थी. कारतूस को बंदूक में लोड करने से पहले उसे दांत से काटना पड़ता था. भारतीय सिपाहियों का मानना था कि कारतूस या तो सुअर की चर्बी से चिकना किया गया था या गाय की चर्बी से. और यह बात हिंदू और मुस्लिम दोनों की भावनाओं को आहत करने वाली थी. इसलिए भारतीय सैनिक 'एनफील्ड' राइफल का उपयोग करने के अनिच्छुक थे. यह अंग्रेजों के खिलाफ सैनिकों के भड़कने का एक फ्लैशपोइंट था. इस बात को हीं 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण माना गया.

1857 के विद्रोह के अन्य कारण –

1857 के विद्रोह के अन्य भी बहुत सारे कारण थे :

धार्मिक और सामाजिक कारण - जातिवाद या नस्लीय भेदभाव को 1857 के विद्रोह का एक प्रमुख कारण माना जाता था. भारतीयों का शोषण किया जाता था और उन्हें यूरोपीय लोगों के साथ घुलने-मिलने से दूर रखा जाता था. अंग्रेज भी भारतीयों के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में हस्तक्षेप करते थे और उन्हें प्रताड़ित करते थे.

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राजनीतिक कारण - ब्रिटिश विस्तार ने अन्यायपूर्ण नीतियों के प्रसार को जन्म दिया जिसके कारण भारत के विभिन्न स्थानों पर रहने वाले नवाबों और जमींदारों की शक्ति का नुकसान हुआ. अनुचित नीतियों की शुरूआत जैसे व्यापार और वाणिज्य की नीति (policy of trade and commerce), अप्रत्यक्ष अधीनता की नीति (सहायक गठबंधन), युद्ध और विलय की नीति, प्रत्यक्ष अधीनता की नीति (चूक का सिद्धांत), कुशासन की नीति (जिसके माध्यम से अवध संलग्न) ने देशी राज्यों के शासकों के हितों को बहुत बाधित किया, और वे एक-एक करके ब्रिटिश विस्तारवाद के शिकार हो गए. इसलिए, वे शासक, जिन्होंने अपने राज्य अंग्रेजों के हाथों गँवा दिए थे, स्वाभाविक रूप से अंग्रेजों के खिलाफ थे और उन सभी ने इस विद्रोह के दौरान उनका पक्ष लिया.

आर्थिक कारक - कराधान और राजस्व प्रणाली में कई बदलाव हुए जिसने किसानों को वृहद् रूप से प्रभावित किया. ब्रिटिश सरकार ने अपने क्षेत्र का विस्तार करने के लिए विभिन्न प्रशासनिक नीतियां लागू की.

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1857 के विद्रोह का प्रभाव –

1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव हिला दी. इस विद्रोह के बाद भारतीय प्रशासन को संभालने में ब्रिटिश सरकार कितनी अक्षम है इस बात का खुलासा हुआ. विद्रोह के परिणामस्वरूप भारत सरकार अधिनियम, 1858 पारित किया गया. इस अधिनियम से पारित होने से भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया और ब्रिटिश राज की शुरुआत हुई जिसने ब्रिटिश सरकार के हाथों में सीधे प्रतिनिधियों के माध्यम से भारत पर शासन करने की शक्ति प्रदान की.

1857 के विद्रोह के प्रमुख नेतृत्वकर्ता – (Major leader of the Revolt of 1857)

शहर प्रमुख नेतृत्वकर्ता
दिल्ली बहादुर शाह II, जनरल बख्त खां
लखनऊ बेगम हज़रत महल, बिरजिस कादिर, अहमदुल्लाह
कानपुर नाना साहिब, राव साहिब, तात्या टोपे, अज़िमुलाह खां 
झाँसी रानी लक्ष्मीबाई
बिहार कुंवर सिंह, अमर सिंह
राजस्थान जयदयाल सिंह, हरदयाल सिंह
फर्रुखाबाद तुफ्ज़ल हसन खां
असम कन्दपरेश्वर सिंह, मणिराम दत्ता बरुआ
उड़ीसा सुरेन्द्र शाही, उज्जवल शाही
 

1857 के विद्रोह की विफलता के कारण –(Reasons for the failure of the Revolt of 1857)

1857 का विद्रोह कुछ कारणों की वजह से अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने में असफ़ल रहा. ये कारण थे –
  1. एक स्पष्ट नेतृत्वकर्ता का अभाव. बहुत सारे नेतृत्वकर्ताओं के होने के कारण सारे आन्दोलनकारी एक साथ एक दिशा में नहीं बढ़ पा रहे थे.
  2. एक सुसंगत योजना का ना होना.
  3. इस विद्रोह का प्रभाव मुख्यतः उत्तर भारत में हुआ. बंगाल, बॉम्बे और मद्रास की तीनों प्रेसीडेंसियों का अप्रभावित रहना इसकी असफलता की वजह रहा.
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