Biography of Subhash Chandra Bose : सुभाष चंद्र बोस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
जिन्होंने देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में बहुत कठिन प्रयास किए हैं।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रारंभिक जीवन के बारे में
सुभाष चंद्र बोस का जन्म कटक उड़ीसा के बंगाली परिवार में हुआ था। उनके माता पिता के ये 9वें संतान थे और ये अपने भाई शरदचंद्र के बहुत करीब थे। इनके पिता एक मशहूर और सफल वकील थे, जिन्हें रायबहादुर की उपाधि दी गई थी। नेताजी बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे और बहुत मेहनती थे, जिसके कारण उन्हें सभी शिक्षकों द्वारा अत्यधिक प्रेम किया जाता था। लेकिन नेताजी खेल को शुरुआत से ही खेल में रुचि नहीं थी। नेता जी ने अपनी स्कूल की पढ़ाई कटक से की और आगे की पढ़ाई के लिए वे कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में फिलॉसफी b.a. में एडमिशन लिया। इस कॉलेज में एक अंग्रेज प्रोफेसर के भारतीयों को सताए जाने पर नेताजी ने प्रोफेसर का विरोध किया। उस समय जातिवाद का मुद्दा बहुत उठाया गया था और यही से नेताजी के मन में अंग्रेजो के खिलाफ जंग शुरू हो गया। नेताजी सिविल सर्विस करना चाहते थे। अंग्रेजों के शासन के चलते भारतीयों को सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी करने के इंग्लैंड भेज दिया गया। इस परीक्षा में नेताजी चौथे नंबर पर आए जिसमें इनका सबसे ज्यादा इंग्लिश विषय में अंक आया था। नेताजी स्वामी विवेकानंद को अपना गुरु मानते थे उनकी बातों को अपने जीवन में लागू किया करते थे। नेताजी के मन में देश के प्रति बहुत श्रद्धा और प्रेम था और देश की आजादी को लेकर अक्सर चिंतित रहते थे। जिसके चलते 1921 में अपनी नौकरी छोड़ भारत वापस आ गए थे।
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सुभाष चंद्र बोस का राजनीतिक जीवन
भारत वापस आने के बाद स्वतंत्रता की लड़ाई में जुट गए। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया। शुरुआत में नेताजी कोलकाता में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे और चितरंजन दास के नेतृत्व में काम किया करते थे। नेताजी चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। 1922 में चितरंजन दास मोतीलाल नेहरू के कांग्रेस पार्टी को छोड़कर अपनी अलग स्वराज पार्टी बनाई। जब चितरंजन दास अपनी अलग पार्टी बना रहे थे उस दौरान नेताजी की पकड़ छात्र-छात्राओं, नौजवानों एवं मजदूर लोगों के बीच अच्छी बन गई थी। नेता जी जल्द से जल्द परतंत्र भारत को स्वतंत्र देखना चाहते थे। लोग नेता जी को सुभाषचंद्र बोस के नाम से जाने लगे थे। उनके कार्यों की चर्चा चारों ओर फैल रही थी। नेताजी एक नौजवान सोच के साथ आए थे, जिससे वे यूथ लीडर के रूप में मशहूर हो रहे थे। 1928 में गुवाहाटी में कांग्रेस की एक बैठक के दौरान नए व पुराने सदस्यों के बीच बातचीत को लेकर मतभेद हो गया। नए युवा नेता किसी भी नियम पर आगे नहीं बढ़ना चाहते हैं अपने हिसाब से चलना चाहते थे, लेकिन पुराने नेता ब्रिटिश सरकार के बनाए नियम के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। सुभाष चंद्र जी के विचार गांधी जी से बिल्कुल भी नहीं मिलते थे। नेताजी गांधी जी की विचारधारा से कभी भी सहमत नहीं थे, उनकी सोच नौजवानों वाली थी। उन दोनों की विचारधारा अलग थी लेकिन मकसद देश की आजादी थी। नेताजी राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए आगे आए। उनके विपक्ष में गांधी जी ने सीताराम्या को खढ़ा कर दिया था। जिसे नेताजी ने हरा दिया था। गांधी जी सीताराम्या के हार से बिल्कुल खुश नहीं थे। नेताजी गांधी जी की दुख की बात सुनने के बाद अपने पद से तुरंत इस्तीफा दे दिया था। नेताजी और गांधीजी के विचार में मेल नहीं होने के कारण नेताजी लोगों की नजर में गांधी विरोधी बन रहे थे। जिसके बाद नेता जी ने कांग्रेस पार्टी से अलग हो गए।
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सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु
1945 में जापान जाते वक्त नेताजी का विमान ताइवान में क्रैश हो गया था।
लेकिन नेताजी की बॉडी नहीं मिली कुछ समय बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था।
भारत सरकार ने इस दुर्घटना पर जांच कमेटी बैठाई थी लेकिन आज तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है।
मई 1956 में शाहनवाज कमेटी नेताजी की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए जापान गई थी, लेकिन ताईवान से कोई खास राजनीति रिश्ता नहीं होने के कारण सरकार से उनसे मदद नहीं मिली।
2006 में मुखर्जी कमीशन ने संसद में यह कहा था कि नेताजी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और उनकी अस्थियां रेंकोजी मंदिर में रखी गई है, वह उनकी नहीं है।
लेकिन इस बात को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया।
आज भी नेताजी की मृत्यु पर जांच और विवाद चल रहा है।
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