History of hijab in Islam: क्या आप जानते हैं हिजाब के इतिहास के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Tue, 15 Mar 2022 12:50 PM IST

Source: Safalta

मंगलवार,15 मार्च को कर्नाटका हाई कोर्ट ने हिजाब विवाद पर अपना फैसला सुनाया है, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। यह फैसला उन लोगों के लिए बहुत बड़ा झटका है जिन्होंने कर्नाटका हाई कोर्ट में याचिका डाली थी हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को लेकर। कर्नाटक की पांच लड़कियों ने हिजाब पर प्रतिबंध को लेकर यह याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। हाईकोर्ट के आदेश से पहले कर्नाटक राज्य सरकार ने राज्य की राजधानी बेंगलुरु में शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए 7 दिनों के लिए बड़े समारोह पर प्रतिबंध लगा दिया है। चलिए जानते हैं हिजाब विवाद से जुड़ी सभी बातें और साथ ही हिजाब क्या होता है, इसके बारे में भी जानते हैं। यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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कर्नाटका में हिजाब विवाद की शुरुआत

कर्नाटक में hijab विवाद लगातार बढ़ने के बाद बासवराज बोम्मई सरकार ने सभी स्कूल और कॉलेज को बंद करने का ऐलान कर दिया था. उग्र विवाद के मद्देनजर, बसवराज बोम्मई सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था. कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने राज्य के सभी लोगों को शान्ति और सद्भाव बनाये रखने की अपील भी की. प्राचार्य द्वारा हिजाब पहनी हुई लड़कियों को कॉलेज में प्रवेश से इनकार करने के बाद राज्य में मुस्लिम छात्रों द्वारा कॉलेज परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया गया. इसी बीच कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उडुपी जिले के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में पढ़ रही मुस्लिम लड़कियों द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें कॉलेजों में हिजाब (सिर पर दुपट्टा) पहनने पर लगे प्रतिबंध पर सवाल उठाया गया था.

न्यायमूर्ति कृष्णा एस. दीक्षित, जिनके समक्ष याचिकाएँ सुनवाई के लिए आईं, ने अनुरोध किया है कि "आइए हम जुनून और भावनाओं को अलग रखें, और कानूनों, कारणों और संविधान के अनुसार चलें." इस सिलसिले में hijab विवाद में आगे कर्नाटक कोर्ट ने निर्णय दिया कि ड्रेस कोड गाइडलाइन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. ज्ञातत्व है कि हिजाब पहनना संविधान के अनुच्छेद 25 में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित है. 

कर्नाटक सरकार ने मंगलवार 22 फरवरी को कहा कि जहां तक हिजाब पर प्रतिबंध का सवाल है, धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।

कर्नाटक सरकार ने कहा कि हिजाब पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन केवल कक्षाओं के भीतर और कक्षा के घंटों के दौरान और इसे पहनना अनिवार्य नहीं है। 

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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार 24 फरवरी को स्पष्ट किया कि उसके द्वारा 10 फरवरी को पारित अंतरिम आदेश, जो कक्षाओं में छात्रों द्वारा धार्मिक पोशाक पहनने पर प्रतिबंध लगाता है, डिग्री कॉलेजों और प्री-यूनिवर्सिटी (पीयू) कॉलेजों दोनों पर लागू होगा, जहां वर्दी निर्धारित की गई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसका आदेश केवल छात्रों पर लागू होता है, शिक्षकों पर नहीं।

इन्हीं विवादों के बीच आइए हम जानते हैं कि हिज़ाब आखिर है क्या और इस्लाम में hijab का इतिहास क्या है -

हिजाब क्या है? (What is hijab)

जैसे हिन्दु स्त्रियों द्वारा सर ढ़कने के लिए दुपट्टा, चुनरी या पल्लू आदि का प्रयोग होता है वैसे हीं ''हिजाब एक स्कार्फ नुमा चौकोर कपड़ा होता है जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने बालों, सर और गर्दन को ढकने के लिए प्रयोग किया जाता है ताकि सार्वजनिक स्थानों या घर पर भी असंबंधित पुरुषों से विनम्रता और गोपनीयता बनाए रखी जा सके. हालाँकि, यह अवधारणा इस्लाम के लिए कुछ अलग नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों जैसे यहूदी और ईसाई धर्म द्वारा भी यह अपनाई गई है.

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हिजाब का जिक्र-

हालांकि hijab पहनने की परंपरा इस्लाम में बेहद गहराई से निहित है, लेकिन कुरान में इसका उल्लेख नहीं बल्कि खिमार का उल्लेख किया गया है. वास्तव में, हिजाब की अवधारणा बहुत प्राचीन है. हालांकि इसे हमेशा हिजाब नहीं कहा जाता है, लेकिन इस्लाम में महिलाओं के शरीर को किसी न किसी रूप में ढकने की अवधारणा 6 वीं शताब्दी की है. हिजाब और खिमार दोनों हीं ऐसे तरीके हैं जिनसे महिलाओं को अपने शरीर को ढंकने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, हालांकि हिज़ाब और खिमार द्वारा ढके जाने वाले हिस्सों और उन्हें पहनने के तरीके में थोड़ा सा अंतर होता है. सूरह अल-अहज़ाब की आयत 59 में कहा गया है, "ऐ पैगंबर, अपनी पत्नियों, अपनी बेटियों और ईमान वालों की महिलाओं से कहो कि वे अपने बाहरी वस्त्रों को अपने ऊपर ले लें. यह अधिक उपयुक्त है. कि न उन्हें पहचाना जाएगा और उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा. अल्लाह सदैव क्षमाशील और दयावान है."

History of hijab in Islam-

मोहम्मद के जीवनकाल में परदा-

ऐतिहासिक साक्ष्य के अंश बताते हैं कि इस्लाम के अंतिम पैगंबर द्वारा अरब में पर्दे की शुरुआत नहीं की गई थी, बल्कि यह वहां पहले से ही मौजूद था और उच्च सामाजिक स्थिति से जुड़ा हुआ था. कुरान के सूरा 33:53 में कहा गया है, "और जब तुम [उसकी पत्नियों] से कुछ मांगो, तो उन्हें एक विभाजन के पीछे से पूछो. यह तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के लिए शुद्ध है." 627 सीई में इस्लामी समुदाय में घूंघटदान करने के लिए एक शब्द, दरबत अल-हिजाब, "मुहम्मद की पत्नी होने" के साथ एक दूसरे के लिए इस्तेमाल किया गया था.

इस्लाम में हिजाब और उसकी परंपराओं का प्रसार-

इस्लाम ने मध्य पूर्व अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों और अरब सागर के आसपास के विभिन्न समाजों में प्रचार किया. इसमें स्थानीय परदे के रीति-रिवाजों को शामिल किया गया. हालाँकि, मोहम्मद के बाद की कई पीढ़ियों द्वारा घूंघट न तो अनिवार्य था और न हीं व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था, लेकिन पैगंबर के समतावादी सुधारों के कारण समाज में खोए हुए प्रभुत्व को वापस पाने के लिए पुरुष शास्त्र और कानूनी विद्वानों ने अपने धार्मिक और राजनीतिक अधिकार का उपयोग करना शुरू कर दिया.

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उच्च वर्ग की अरब महिलाओं द्वारा घूंघट करना-

उच्च वर्ग की अरब महिलाओं में पर्दे को जल्दी अपना लिया गया, जबकि गरीब लोगों ने इसे अपनाने में धीमी गति से काम किया क्योंकि यह खेतों में काम करते थे और पर्दा यहाँ उनके काम में हस्तक्षेप करता था. इस प्रथा को शालीनता के रूप में, कुरान के आदर्शों की उपयुक्त अभिव्यक्ति के रूप में और एक मूक घोषणा के रूप में अपनाया गया था कि महिला का पति उसे (महिला को) निष्क्रिय रखने के लिए पर्याप्त रूप से समृद्ध है. 1960 और 1970 के दशक के बीच मुस्लिम देशों में पश्चिमीकरण का बोलबाला होने लगा. हालांकि, 1979 में, हिजाब कानून लाए जाने के बाद ईरान में व्यापक प्रदर्शन किए गए. कानून ने फैसला किया कि देश में महिलाओं को घर से निकलने के लिए स्कार्फ पहनना होगा.

हिजाब का पुनरुत्थान बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मिस्र में इस्लामी विश्वास के पुनर्मिलन और पुनर्समर्पित करने के साधन के रूप में शुरू हुआ. आंदोलन को सहवाह के रूप में जाना जाता था और आंदोलन की महिला अग्रदूतों ने इस्लामी पोशाक को अपनाया जो एक अनफिट, पूरी बाजू, टखने की लंबाई तक के गाउन के रूप में बना हुआ था. जिसमें पूरा सिर कवर होता था और यह छाती और पीठ को भी ढकता था. इस आंदोलन को खूब गति मिली और यह प्रथा मुस्लिम महिलाओं में बहुत अधिक व्यापक हो गई. उन्होंने इसे अपनी धार्मिक मान्यताओं की धरोहर मानकर पश्चिमी प्रभावों को अस्वीकार करने के लिए सार्वजनिक रूप से पहना था. हिजाब को दमनकारी और महिलाओं की समानता के लिए हानिकारक होने समेत कई आलोचनाओं के बावजूद, कई मुस्लिम महिलाएं इस पोशाक को सकारात्मक चीज मानती हैं.

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विभिन्न प्रकार के इस्लामी कपड़े

  • हिजाब: यह एक ऐसा हेडस्कार्फ़ है जो बालों और गर्दन को ढकता है.

  • खिमार: यह एक लंबा दुपट्टा होता है जो सिर और छाती को ढकता है लेकिन चेहरा खुला रखता है.

  • नकाब: यह एक ऐसा घूंघट होता है जो आंख के क्षेत्र को खुला रखते हुए चेहरे और सिर को ढकता है.

  • बुर्का: यह एक महिला के पूरे शरीर को ढकता है. यह या तो वन पीस गारमेंट या टू पीस गारमेंट भी हो सकता है.

  • शायला : कपड़े का एक आयताकार टुकड़ा जिसे सिर के चारों ओर लपेटा जाता है और मिलाने की जगह पर पिन किया जाता है.

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प्रश्न 1. Hijab क्या होता है? 

उत्तर1. ''Hijab एक स्कार्फ नुमा चौकोर कपड़ा होता है जो मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने बालों, सर और गर्दन को ढकने के लिए प्रयोग किया जाता है

प्रश्न 2. Hijab का जिक्र कहां किया गया है?

उत्तर2. कुरान में हिजाब का उल्लेख नहीं किया गया है बल्कि खिमार का उल्लेख किया गया है

प्रश्न 3. इस्लाम में हिजाब और उसकी परंपरा क्या है?

उत्तर3. इस्लाम ने मध्य पूर्व अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों और अरब सागर के आसपास के विभिन्न समाजों में प्रचार किया. इसमें स्थानीय परदे के रीति-रिवाजों को शामिल किया गया। 

प्रश्न 4. विभिन्न प्रकार के इस्लामिक कपड़े कौन से होते हैं?

उत्तर4. हिजाब, खिमार,  नकाब, बुर्का, शायला,