Durand Line: क्या आप जानते हैं पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच विवादित डूरंड लाइन के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Mon, 14 Feb 2022 09:24 PM IST

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Durand Line दरअसल अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2670 किलोमीटर लंबी एक अंतरराष्ट्रीय भूमि सीमा है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की इस भूमि सीमा को डूरंड रेखा कहते हैं. इस रेखा का पश्चिमी छोर जहाँ ईरान की सीमाओं को छूता है वहीँ इसका पूर्वी छोर को चीन की सीमा को स्पर्श करता है.  यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

सम्पूर्ण विवरण - 

Durand Line की स्थापना सन 1893 में की गई थी. ब्रिटिश भारत और अमीरात ऑफ़ अफगानिस्तान के इस इंटरनेशनल बॉर्डर की स्थापना ब्रिटिश सिविल सेवक सर मोर्टिमर डूरंड और अफगान शासक अब्दुर रहमान खान के द्वारा की गई थी और डूरंड रेखा के रूप में एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे. सर मोर्टिमर डूरंड के नाम पर इस रेखा का नाम डूरंड रेखा पड़ा. 

कह सकते हैं कि डूरंड रेखा 19वीं सदी के ब्रिटेन और रूस के बीच के उस बड़े खेल की विरासत है जिसमें जहां अंग्रेजों द्वारा अफगानिस्तान को बफर के रूप में इस्तेमाल किया गया था. सन 1893 में अफगानिस्तान और भारत को अलग करने के लिए सीमांकन का एक समझौता हुआ था जिसे डूरंड रेखा कहा गया. इस समझौते के बाद दूसरे अफगान युद्ध की समाप्ति के दो साल बाद 1880 में अब्दुर रहमान अफगानिस्तान के राजा बनाए गए और अंग्रेजों ने अफगान साम्राज्य के कई हिस्सों पर अपना कब्जा कर लिया. देखा जाए तो अब्दुर रहमान मूल रूप से एक ब्रिटिश कठपुतली थे.

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डूरंड के साथ उनके समझौते ने भारत के साथ अफगान "सीमा" पर उनके और ब्रिटिश भारत के "प्रभाव क्षेत्र" की सीमाओं का तब सीमांकन किया. ‘सेवन क्लॉज़’ एग्रीमेंट ने 2,670 किलोमीटर की रेखा को मान्यता दी, जो चीन के साथ सीमा से लेकर ईरान के साथ अफगानिस्तान की सीमा तक फैली हुई है. इसने रणनीतिक खैबर दर्रा को भी ब्रिटिश के पक्ष में कर दिया. यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सीमा पर हिंदूकुश में एक पहाड़ी दर्रा है. यह दर्रा लंबे समय तक वाणिज्यिक और रणनीतिक महत्त्व का केंद्र था, यही वह मार्ग था जिस मार्ग से 1839 से लगातार आक्रमणकारियों ने भारत में प्रवेश किया था और अंततः यहाँ अंग्रेज़ों के द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया था. 

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यह रेखा पश्तून आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुज़रती है, जिसने गाँवों, घरों और परिवारों की भूमि को दो क्षेत्रों के बीच विभाजित कर दिया. उन इलाकों में रहने वाले इस रेखा को पसंद नहीं करते, वे कहते हैं कि यह नफरत की रेखा है. इस नफरत का सबूत वास्तव में तब दिखाई दिया जब सन 1947 में संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने वाले पाकिस्तान के खिलाफ मतदान करने वाला अफगानिस्तान एकमात्र देश था. वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के साथ पाकिस्तान को डूरंड रेखा विरासत में मिली और इसके साथ हीं अफगानिस्तान ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया. जब तालिबान ने पहली बार काबुल में सत्ता हथिया ली, तो उन्होंने डूरंड रेखा को खारिज़ कर दिया था. उन्होंने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का निर्माण करने के लिये एक इस्लामी कट्टरपंथ के साथ पश्तून पहचान को भी मज़बूत किया, जिसके चलते वर्ष 2007 के आतंकवादी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया था.

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