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आजीवन कारावास -
भारत में आजीवन कारावास एक ऐसा दण्ड है जिसे पाने वाले को अपना पूरा जीवन कैद में बिताना पड़ता है. उच्चतम न्यायलय द्वारा आजीवन कारावास का मतलब जीवनपर्यन्त का कारावास निर्धारित किया गया है. आजीवन कारावास एक ऐसी सज़ा है जो बेहद गम्भीर किस्म के मामलों में अभियुक्त को सुनाई जाती है. जैसे - हत्या, बलात्कार, देशद्रोह आदि.निर्वासन का दण्डादेश -
भारतीय दण्ड संहिता 1860 में आजीवन कारावास को पहले निर्वासन का दण्डादेश या कालापानी की सज़ा कहा जाता था क्योंकि तब आजीवन कारावास पाए हुए व्यक्ति को राज्य से बाहर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में सज़ा काटने के लिए भेज दिया जाता था. परन्तु 1955 में भारतीय दण्ड संहिता संशोधन अधिनियम के तहत ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ शब्द को बदल कर इम्प्रिसोंमेंट ऑफ़ लाइफ (आजीवन कारावास) कर दिया गया.क्या आजीवन कारावास 14 साल का होता है ?
कुछ मामलों में लोगों में यह भ्रांतियां हैं कि आजीवन कारावास 14 साल या 20 साल का होता है, जबकि इसमें कोई सच्चाई नहीं है. दरअसल भारतीय दण्ड अधिनियम की धारा 55 के एक नियम के मुताबिक आजीवन कारावास को संक्षिप्त किया जा सकता है. इसमें उपयुक्त राज्य सरकार जिसमें दण्ड का आदेश दिया गया या केंद्र हीं सज़ा कम कराने का माध्यम हो सकता है अन्य कोई नहीं. इसके अलावा 2012 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला किया था और उम्रकैद की सजा सीमित नहीं है, और इसे 25 साल तक बढ़ाया भी जा सकता है.इस नियम के अनुसार केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड पाए हुए अपराधी की सज़ा को कम करके आजीवन कारावास में बदला जा सकता है. राज्य सरकार यह तय करती है कि अपराधी को 14 साल, 20 साल, 30 साल या जीवन भर जेल में रहना पड़ेगा. लेकिन यह अवधि 20 साल या फिर न्यूनतम 14 साल से कम नहीं हो सकती है. 20 साल या फिर न्यूनतम 14 साल भी हुई तो यह सरकार द्वारा कम करवाई हुई सज़ा होती है इससे लोगों में यह भ्रान्ति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए कि आजीवन कारावास की सज़ा 14 साल की होती है. उदाहरण -सिद्धार्थ वशिष्ठ @मनु शर्मा बनाम जेसिका लाल हत्याकांड.
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घटी हुई अवधि है 14 साल न कि सज़ा की पूरी अवधि -
14 या 20 साल के बाद अपराधी को जेल से बरी कर देना उस अपराधी के चरित्र के ऊपर निर्भर करता है. दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सजा के मुआवजे, रूपांतरण और सहनशीलता भी एक बिंदु है. फिर भी चाहे कोई भी सरकार हो आजीवन कारावास की सज़ा पाए हुए अपराधी को 14 साल के कारावास को भोगने के बाद हीं मुक्त किया जा सकता है. सीआरपीसी की धारा 433-ए के अनुसार आजीवन कारावास की घटी हुई अवधि 14 साल से कम नहीं हो सकती हैगोपाल विनायक गोडसे में यह महाराष्ट्र राज्य के खिलाफ आयोजित किया गया था कि आजीवन कारावास, आजीवन कारावास है और कुछ नहीं और इसलिए आजीवन कारावास की सजा पाने वाला कैदी अपना शेष जीवन जेल में बिताने के लिए बाध्य है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया गया है कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस तरह की सजा को कम या माफ किया जा सकता है, इस तर्क में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों के एक पीठ द्वारा पुष्टि की गई थी कि आपराधिक संहिता और प्रक्रिया के नियम स्पष्ट रूप से जीवन और प्रक्रिया के बीच अंतर करते हैं.
आजीवन कारावास का उद्देश्य -
सजा से व्यक्तित्व परिवर्तन -
जब कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो साबित होने पर उसे एक अदालत द्वारा सज़ा दी जाती है और फिर जेल में डाल दिया जाता है. यहाँ अपराध सिद्ध व्यक्ति से उस की सभी स्वतंत्रता छीन ली जाती है और उसे उसके घर समाज से दूर कर दिया जाता है. इस प्रकार की सजा व्यक्ति को एक अच्छा इंसान भी बना सकती है. जेल में रहते हुए उसके अच्छे चरित्र को देखते हुए बाद में न्यायालय उसकी मौलिक स्वतंत्रता को बहाल कर सकती है और उसे अपने परिवार के साथ समाज में स्वतंत्र रूप से रहने का अवसर भी दे सकती है. कभी-कभी न्यायालय अपराधियों को आजीविका के लिए काम भी देता है ताकि वे दोबारा अपराध न करें. इसलिए अपराधियों को उसके गलत कार्यों के लिए दंड मिलना महत्वपूर्ण हैं.
अपराध का निरोध -
अपराधियों को दंडित करने से समाज के अन्य लोगों को भय उत्पन्न होता है और वे गलत कामों को करने से डरते हैं इससे समाज में अपराध का शमन होता है और शान्ति बनी रहती है. घर समाज से दूर जेल में सज़ा काटते अपराधी में यह भावना जन्म ले सकती है कि वे अपने अपराध को दोबारा न दोहराएं. सजा अपराधियों को जीवन का मूल्य सिखाती है. और उन्हें खुद को बदलने और कानून का पालन करने वाले नागरिक बनने का मौका देती है
क्या कोई अन्य विकल्प है ?
अपराध करने के बाद, कैदी के पास रिहा होने का कोई विकल्प नहीं होता है और उसे जेल की सजा का सामना करना हीं पड़ता है. सीआरपीसी की धारा 433-ए के अनुसार आजीवन कारावास की घटी हुई अवधि 14 साल से कम नहीं हो सकती है.
समाज की सुरक्षा -
हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को समाज में रहने देना हर हाल में खतरनाक हो सकता है इसलिए उसे पुलिस के हवाले करना जरुरी है. हत्या या बलात्कार जैसे गंभीर अपराध करने वाले अपराधी को न्यायाधीश द्वारा आदेशित आजीवन कारावास का सामना करना पड़ता है, और यही एक तरीका है जिससे हम अपने परिवार, समाज और जनता को इन अपराधियों से बचा सकते हैं.
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उल्टा भी पड़ता है पासा -
कैदी के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए जेलें बनाई गयी हैं लेकिन कभी-कभी यह पहल उलटी हो जाती है और अपराधियों के मन में नकारात्मक रवैया ला देती है. कारागार अपराधी की स्वतंत्रता छीनकर उसके मन में भय की भावना पैदा करना चाहती है पर कई बार पश्चाताप की बजाय अपराधियों के मन में प्रतिशोध और क्रोध की भावना विकसित हो जाती है.
जेल में सकारात्मक प्रभाव पैदा करने के लिए दोषियों की उचित काउंसलिंग आवश्यक है, उन्हें अपनी गलती का एहसास कराने और उस के लिए पश्चाताप करने में सहायता की जानी चाहिए. उन्हें यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वे इस तरह के कृत्यों को दुबारा कभी न दोहराएं.
भारतीय संविधान में आजीवन कारावास पर निम्न नियमों का उल्लेख है -
- आजीवन कारावास का मतलब जीवन के अंत सज़ा काटनी होगी.
- यह सज़ा जीवन भर चल सकती है.
- आजीवन कारावास की सज़ा 14, 20 या 25 वर्ष है.
- अपराधी जेल या बाहर उसके रिश्तेदार उसकी रिहाई का अनुरोध या मांग नहीं कर सकते.
- आजीवन कारावास को माफ नहीं किया जा सकता.
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किन कारणों पर हो सकती है कैदी की रिहाई -
- अगर कोई निर्दोष व्यक्ति गलती से अपराध के लिए पकड़ा जाता है, तो उसे रिहा कर दिया जाता है.
- व्यक्ति के व्यवहार, स्वास्थ्य और पारिवारिक स्थिति को देख कर भी सज़ा कम होती है. यदि कोई व्यक्ति सज़ा के दौरान बदल जाता है और अच्छे चरित्र का अच्छा इंसान बन जाता है कि ऐसा दीखता है कि वह अब कभी अपराध नहीं करेगा तो उसे रिहा किया जा सकता है.
- यदि आजीवन कारावास की सजा किसी महिला को मिलती है, और सज़ा काट रही महिला गर्भवती हो जाती है या उसे प्रजनन संबंधी कोई अन्य समस्या है, तो उसे रिहा किया जा सकता है.
- 14 साल से पहले किसी भी कैदी को रिहा नहीं किया जाता है.
आजीवन कारावास की अवधि घटने के बाद भी किसी भी हाल में 14 साल से कम नहीं हो सकती है