प्रारंभिक जीवन
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मुंशी प्रेमचंद जी की शिक्षा
प्रेमचंद जी की प्रारंभिक शिक्षा 7 साल की छोटी उम्र से ही अपने गांव लमही के एक छोटे से मदरसा से शुरू हुई थी। मदरसा में रहकर उन्होंने हिंदी के साथ उर्दू व थोड़ा बहुत अंग्रेजी भाषा सीखा था। ऐसे करते हुए धीरे-धीरे स्वयं के दम पर उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया और स्नातक तक की पढ़ाई के लिए बनारस के कॉलेज में एडमिशन लिया। पैसे की कमी के चलते अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी, बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए मैट्रिक तक की पढ़ाई पास की लेकिन जीवन के किसी पड़ाव पर हार नहीं मानी। 1919 में फिर से अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए बीए की डिग्री ली।
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मुंशी प्रेमचंद जी का विवाह एवं परिवार
प्रेम चंद जी बचपन से ही किस्मत की लड़ाई से लड़ रहे थे कभी उन्हें परिवार का लाड प्यार और दुलार नहीं मिला। पुराने रिवाजों के चलते पिताजी के दबाव में आकर 15 साल की बहुत कम उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। प्रेमचंद जी का विवाह उनकी मर्जी के खिलाफ एक ऐसी लड़की से हुआ था जो स्वभाव से बहुत झगड़ालू प्रवृत्ति की थी और पिताजी ने लड़की के अमीर परिवार की लड़की देख कर उनका विवाह कर दिया था। थोड़े समय में पिताजी की मृत्यु हो गई जिसके बाद पूरा परिवार का भार प्रेमचंद जी के सर आ गया। ऐसे में एक समय ऐसा आया कि उनको नौकरी के बाद भी जरूरत के समय अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को बेच कर घर चलाना पड़ा। बहुत कम उम्र में ही गृहस्थी का सारा बोझ प्रेमचंद जी के सर आ गयाय़ प्रेमचंद जी की अपनी पहली पत्नी से बिल्कुल भी नहीं बनी जिसके चलते उनका तलाक हो गया और कुछ समय गुजरने के बाद प्रेमचंद जी ने अपनी पसंद से लगभग 25 साल की एक विधवा स्त्री से दूसरा विवाह किया, जो की बहुत संपन्न रहा। इस विवाह के बाद इन्हें अपने जीवन में बहुत तरक्की मिलती गई।
मुंशी प्रेमचंद जी की कार्यशैली
प्रेमचंद जी अपने कार्यों को लेकर बचपन से ही सक्रिय रहते थे। बहुत कठिनाइयों और गरीबी के बावजूद भी उन्होंने अपने अंत समय तक हार नहीं मानी और कुछ ना कुछ करते रहे। हिंदी नहीं उर्दू में भी उन्होंने अपनी अमूल्य लेख छोड़ी है। लमही गांव छोड़ने के बाद कम से कम 4 साल तक वे कानपुर में रहे और वहीं रहकर एक पत्रिका के संपादक से मुलाकात कर कई लेख और कहानियां प्रकाशित करवाई। प्रेमचंद जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भी कई कविताएं लिखी है। धीरे-धीरे उन्होंने उनकी कहानियों कविताओं और लेख को लोगों की तरफ से बहुत सराहना मिला, जिसकी चलते उनकी पदोन्नति हुई और गोरखपुर में उनका ट्रांसफर हुआ। यह भी लगातार एक के बाद एक प्रकाशन आते रहे। इस बीच प्रेमचंद जी ने महात्मा गांधी के आंदोलन में भी उनका साथ दिया था। 1921 में अपनी पत्नी से सलाह देने के बाद बनारस आकर सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया और अपनी रूचि के अनुसार लेखन पर ध्यान दिया। एक समय के बाद अपनी लेखन रुचि में नए बदलाव लाने के लिए इन्होंने अपनी किस्मत को सिनेमा जगत में अपनाने के लिए ट्राई किया और मुंबई पहुंच गए। इसके साथ ही उन्होंने कुछ फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन किस्मत ने यहां इनका साथ नहीं दिया और वह फिल्म पूरी नहीं बन पाई, जिससे प्रेमचंद जी को काफी नुकसान हुआ और उन्हें मुंबई छोड़कर वापस आने का निर्णय लिया।
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प्रेमचंद जी के रचनाओं के नाम
मुंशी प्रेमचंद जी की सभी रचनाएं प्रमुख थी किसी को भी अलग नहीं कह सकते, उन्होंने हर तरह की अनेक लेख और रचनाएं लिखी है, बचपन से ही हिंदी में उनके लेखों को पढ़ते आए हैं उन्होंने कई उपन्यास, नाटक, कविताएं, कहानियां और हिंदी के लिए अनेक लेख लिखे हैं, जैसे गोदान, गबन कफ़न आदि इनकी महान रचनाओं में से एक है।