One Nation One Election: क्या है एक देश एक चुनाव

Safalta Experts Published by: Kanchan Pathak Updated Thu, 21 Jul 2022 10:21 PM IST

Highlights

वन नेशन, वन इलेक्शन एक ऐसी प्रणाली की परिकल्पना करता है, जहाँ सभी राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ होंगे और इस प्रकार समय और धन दोनों की बचत हो सकेगी. इसमें भारतीय चुनाव चक्र का इस तरह से पुनर्गठन किया जाएगा कि मतदाता एक हीं दिन, एक हीं समय या फिर चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के लिए अपना वोट डाल सकेंगे.

Source: Safalta.com

पिछले काफी समय से वन नेशन, वन इलेक्शन यानि एक देश एक चुनाव काफी चर्चा में है. लंबे समय से लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने पर बहस चल रही है. आइए जानते हैं इसके बारे में सब कुछ. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here
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जरूरत है एक देश एक चुनाव की

जैसा कि हम जानते हैं कि लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है. और इस लिए देश में हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव की प्रक्रिया चल रही होती है. ये आए दिन के चुनाव प्रशासनिक, सुरक्षा बल और आम जन जीवन से लेकर देश के आर्थिक कोष पर भी सीधा असर डालते हैं, और इन सबका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष असर देश के विकास कार्यों पर पड़ता है. इस प्रकार अगर लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएँ तो इन सब स्थितियों से आसानी से बचा जा सकता है. अगर देश में चुनाओं की बात करें तो लोकसभा और राज्य विधानसभा के अतिरिक्त पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी तो हैं. कुल मिला कर बात वही कि हर कुछ महीनों में कहीं न कहीं चुनाव लगे हीं रहते हैं.
 

खबरों में क्यों ?

हाल में एक राष्ट्र एक चुनाव और सभी चुनावों के लिए एक मतदाता सूची का मुद्दा फिर से सामने आया है. वर्तमान में, भारतीय शासन व्यवस्था में जब भी सरकार का पांच साल का कार्यकाल समाप्त होता है या विभिन्न कारणों से इसे भंग किया जाता है तो राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग आयोजित किए जाते हैं.
 

एक राष्ट्र एक चुनाव प्रक्रिया

वन नेशन, वन इलेक्शन एक ऐसी प्रणाली की परिकल्पना करता है, जहाँ सभी राज्यों और लोकसभा के चुनाव एक साथ होंगे और इस प्रकार समय और धन दोनों की बचत हो सकेगी. इसमें भारतीय चुनाव चक्र का इस तरह से पुनर्गठन किया जाएगा कि मतदाता एक हीं दिन, एक हीं समय या फिर चरणबद्ध तरीके से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव के लिए अपना वोट डाल सकेंगे.
 
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एक राष्ट्र एक चुनाव, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

साल 1952, 1957, 1962, 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव कराना एक आदर्श माना जाता था. 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओ के भंग और दिसंबर 1970 में लोकसभा के विघटन के बाद, राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनाव अलग-अलग आयोजित किए गए.
साल 1983 में चुनाव आयोग की वार्षिक रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने पर विचार किया गया था. विधि आयोग ने 1999 में अपनी रिपोर्ट में इस कदम का समर्थन किया. पीएम मोदी के 2016 में फिर से इस बारे में बात करने पर नीति आयोग द्वारा इस विषय पर एक वर्किंग पेपर तैयार किया गया.
एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए विधि आयोग की प्रमुख सिफारिशें
विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित बातों के लिए सुझाव दिया -
 
• यदि कोई सरकार मध्यावधि में गिरती है, तो नई सरकार का कार्यकाल केवल शेष अवधि के लिए होगा.
• सरकार के खिलाफ हर अविश्वास प्रस्ताव के बाद विश्वास प्रस्ताव होना चाहिए.
• बहुमत दल के नेता को पूरे सदन द्वारा प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में चुना जा सकता है.
• विभिन्न राज्यों को अपने संबंधित कानूनों में कुछ बदलाव लाने की जरुरत है.
एक राष्ट्र, एक चुनाव के साथ एक मतदाता सूची
• एक राष्ट्र एक चुनाव में लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों के लिए केवल एक मतदाता सूची का उपयोग किया जाना चाहिए.
• एक सामान्य मतदाता सूची से सरकार के खर्चे की बचत होगी.
• नगरपालिका और पंचायत चुनावों के लिए भी उसी मतदाता सूची को अपनाया जा सकता है.
एक राष्ट्र, एक चुनाव, के खिलाफ विचार
• राष्ट्रीय और राज्य के मुद्दों के बीच बहुत बड़ा अंतर है, और एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं के फैसले पर असर पड़ सकता है.
• यह समय और पैसा बचाने वाली कार्रवाई तो हो सकती है. पर चूंकि चुनाव पांच साल में एक बार होते हैं, इससे जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही में कमी आ सकती है. अलग-अलग चुनाव से सभी मंत्रियों और उनके अधिकारियों पर एक जवाबदेही डालते हैं.
• ऐसे किसी भी संशोधन के लिए पार्टियों और भारत के नागरिकों के बीच आम सहमति जरूरी है. इस कदम को लागू करने के लिए उन सभी को एकमत होना चाहिए.