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मराठा संघ- (Maratha Union)
मराठा संघ की उत्पत्ति का पता राजाराम द्वारा जागीर या सरंजम प्रणाली के पुनरुद्धार से लगाया जा सकता है. इस प्रणाली की नींव बालाजी राव प्रथम के समय में रखी गई थी. इस प्रक्रिया में, साहू ने अपने विभिन्न मराठा सरदारों को क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से चौथ या सरदेशमुखी जैसे कर एकत्र करने के लिए अधिकार पत्र जारी किया था.मराठा संघ में बहुत से महत्वपूर्ण मराठा जागीरदार शामिल थे. जैसे - (i) बरार के रघुजी भोंसले (ii) बड़ौदा के गायकवाड़ (iii) इंदौर के होल्कर (iv) ग्वालियर के सिंधिया (v) पूना के पेशवा इत्यादि. पेशवा लोग मराठा साम्राज्य के वफादार मंत्री थे जिन्हें विभिन्न प्रशासनिक और राजनीतिक मामलों में राजा की सहायता के लिए नियुक्त किया गया था. सात पेशवाओं में, बालाजी राव प्रथम सबसे योग्य पेशवा थे. बाकी पेशवा उनके बनिस्पत काफी कमजोर थे.
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बालाजी विश्वनाथ - (1713 से 1721 ई.) - सन 1713 में साहूजी ने एक युवा शाहू बालाजी विश्वनाथ को साम्राज्य की मजबूती के लिए पेशवा (प्रधानमंत्री) के पद पर नियुक्त किया था. उन्होंने शाहू
के पक्ष में सभी सरदारों को जीतने के बाद मराठा साम्राज्य को चरम बिंदुओं तक बढ़ा दिया था. उन्होंने इस पद को अत्यंत महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ वंशानुगत भी बनाया था.
बाजीराव पेशवा प्रथम (1721 से 1740 ई.) - बाजीराव पेशवा प्रथम, बालाजी विश्वनाथ के सबसे बड़े पुत्र थे; वे 20 साल की छोटी उम्र में पेशवा के रूप में बालाजी विश्वनाथ के उत्तराधिकारी बने. वह शिवाजी के बाद अपनी गुरिल्ला रणनीति के लिए जाने जाते हैं.
जानिए मराठा प्रशासन के बारे में पूरी जानकारी
बालाजी बाजी राव- (1740-1761 ई.) - बालाजी बाजी राव को नाना साहब के नाम से भी जाना जाता है, वे 20 साल की उम्र में अपने पिता के उत्तराधिकारी बने. बालाजी बाजी राव की 1761 में यह सुनकर मृत्यु हो गई थी कि उनके बेटे (विश्वास राव) और चचेरे भाई (सदशिव) की पानीपत के युद्ध के मैदान में मृत्यु हो गई है.
पेशवा माधव राव प्रथम - पेशवा माधव राव प्रथम, पेशवा परिवार के सबसे बड़े जीवित सदस्य थे जो राज्य के वास्तविक शासक बने. उनकी मृत्यु के बाद, पेशवाओं ने अपना साम्राज्य खो दिया.
Administration of Peshwas
पेशवाओं का प्रशासन-
- पेशवाओं ने अपने सचिवालय का नाम हुजूर दफ्तर रखा था जो पूना में स्थित था. पेशवाशिप के तहत, सामंतों ने अपने जागीरों पर स्वतंत्र रूप से शासन किया.
- उन्होंने प्रशासन के लिए गाँव को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया, जिसका नेतृत्व पाटिल किया करते थे. कुलकर्णी गांव के दस्तावेज को सँभालने में उनकी मदद करते थे तो वहीँ पोटार मुद्रा का निरीक्षण करने के लिए थे.
- बल्यूट सिस्टम- इस प्रणाली के तहत, किसानों को भुगतान करना पड़ता था. वैसे ज्यादातर उन्हें हर साल कटाई के बाद कृषि उपज का भुगतान करना पड़ता था.
- प्रशासन की बड़ी इकाइयाँ तारफ, परगना, सरकार और सूबा थीं जहाँ मामलातकर सर्वोच्च कर्मी थे जिन्हें कामविसदार द्वारा सहायता प्रदान की जाती थी.
- भ्रष्टाचार को रोकने के लिए देशमुख, देशपांडे और दाराखदारों को नियुक्त किया गया था.
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