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पुर्तगाली भारत की समयरेखा –
1498 | वास्को-डी-गामा कालीकट पहुँचे जहाँ उनका स्वागत जमोरिन ने किया |
1503 | कोचीन में पहला पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया था. |
1505 | कन्नानोर में दूसरा पुर्तगाली फोर्ट बनाया गया. |
1509 | मिस्र, अरब और ज़मोरिन के संयुक्त पोत समूह को पुर्तगालियों के पोत द्वारा दीव की लड़ाई में नष्ट कर दिया गया. |
1510 | अल्फोंसो अल्बुकर्क ने गोवा पर कब्जा कर लिया गया. गोवा पहले बीजापुर सल्तनत का हिस्सा था. |
1530 | गोवा को पुर्तगालियों की राजधानी घोषित कर दिया गया. |
1535 | दीव को पूरी तरह से अधीन बना लिया गया. |
1539 | पुर्तगाली दीव को ओटोमन्स, मिस्र के मामलुक, गुजरात सल्तनत और कालीकट के ज़ोमोरिन के संयुक्त पोतों द्वारा घेर लिया गया. इस युद्ध का अंत पुर्तगालियों की जीत के साथ हुआ. |
1559 | पुर्तगालियों द्वारा दमन पर कब्ज़ा कर लिया गया. |
1596 | दक्षिण-पूर्व एशिया में डचों ने पुर्तगालियों को हटाकर मसाले के व्यापार में एकाधिकार स्थापित कर लिया. |
1612 | अंग्रेजों ने सूरत पर कब्ज़ा कर लिया. |
1661 | बॉम्बे भी अंग्रेजों को सौंप दिया गया. |
1663 | पुर्तगालियों ने मालाबार तट पर स्थित अपने सारे किलों पर से अधिकार खो दिया. |
1779 | दादर और नागर हवेली पर अधिकार कर लिया गया |
1843 | पंजिम को पुर्तगालियों की राजधानी बना दिया गया. |
1961 | भारतीय सेना ने गोवा को मुक्त करने के लिए एक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप पुर्तगालियों ने गोवा की अपनी अंतिम औपनिवेशिक चौकी भी खो दी. |
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पुर्तगाली भारत की प्रारंभिक शुरुआत -
पुर्तगाली उपनिवेशवाद तब शुरू हुआ जब वास्को डी गामा 20 मई सन 1498 ईस्वी को कालीकट के मालाबार तट पर पहुंचे. उन्होंने कालीकट के ज़मोरिन शासक से मुलाकात की और अरब हमलावरों की आपत्तियों के बावजूद, ज़मोरिन से कालीकट में व्यापार करने की अनुमति प्राप्त की. लेकिन वास्को-डी-गामा अपने सामान के सीमा शुल्क और कीमत का भुगतान करने में असमर्थ थे. जब शुल्कों का भुगतान नहीं किया गया, तो ज़मोरिन के अधिकारियों ने वास्को-डी-गामा के कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया. इससे वह इतने नाराज हो गए कि उन्होंने कुछ मूल निवासियों और मछुआरों का बलपूर्वक अपहरण कर लिया.
लेकिन जहां तक लिस्बन में पुर्तगाली सरकार का सवाल है, यह अभियान सफल रहा.
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पुर्तगाली उपनिवेशवाद –
- पहले वायसराय फ्रांसिस्को डी अल्मेडा ने अपने मुख्यालय की स्थापना आधुनिक दिन कोचीन में की थी.
- सन 1509 में अल्फोंसो डी अल्बुकर्क पूर्व में पुर्तगाली संपत्ति के दूसरे गवर्नर बने. मार्शल फर्नाओ कॉटिन्हो के नेतृत्व में एक पुर्तगाली पोत कालीकट के तट पर भेजा गया. उनके निर्देश स्पष्ट थे: जमोरिन का विनाश.
- शहर को मलबे में बदल दिया गया और ज़मोरिन्स महल पर कब्जा कर लिया गया, लेकिन स्थानीय बलों ने रैली की, हमलावर पुर्तगालियों पर टूट पड़े और अल्बुकर्क को घायल कर दिया, जिससे वे पीछे हट गए.
- अल्बुकर्क ने सन 1513 में मालाबार में पुर्तगाली हितों की रक्षा के लिए ज़मोरिन के साथ समझौता किया और संधि में प्रवेश किया.
- विजयनगर साम्राज्य की सहायता से अफोंसो डी अल्बुकर्क ने सन 1510 में बीजापुर सल्तनत को हराकर गोवा की स्थायी बस्ती की स्थापना की. यह भारत में पुर्तगाली औपनिवेशिक संपत्ति का मुख्यालय और वायसराय की सीट बन गया.
- सन 1661 में अंग्रेजों को दिए जाने तक आधुनिक समय का मुंबई भी औपनिवेशिक कब्जे का हीं हिस्सा था.
- सन 1799 से 1813 तक गोवा पर कुछ समय के लिए अंग्रेजों का कब्जा रहा था.
- सन 1843 ईस्वी में राजधानी को पंजिम स्थानांतरित कर दिया गया, फिर इसका नाम बदलकर नोवा गोवा कर दिया गया, और तब यह आधिकारिक तौर पर पुर्तगाली भारत की प्रशासनिक सीट बन गई.
- अगली शताब्दी तक के लिए पुर्तगाली नियंत्रण केवल दमन और दीव और गोवा के परिक्षेत्रों तक ही सीमित रह गया.
पुर्तगालियों का पतन -
- जब अधिकांश भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिल चुकी थी, पुर्तगालियों ने तब भी भारत में अपनी औपनिवेशिक चौकियों पर कब्जा कर रखा था. गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ स्थानीय विरोधों को क्रूरता के साथ बलपूर्वक दबा दिया गया था. भारत सरकार के अपनी औपनिवेशिक होल्डिंग्स को सौंपने के लिए बार-बार अनुरोध करने के बावजूद भी, डिक्टेटर एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाजा के शासन के अंतर्गत पुर्तगाली सरकार ने इस बात से इनकार कर दिया.
- सन 1951 से सन 1961 तक 'वेट एंड वाच' की रणनीति अपनाते हुए, भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय समुदायों के समक्ष उपनिवेशवाद के मुद्दे को उजागर किया, साथ ही साथ एक आर्थिक प्रतिबंध भी लागू किया.
- दिसंबर सन 1961 में, भारतीय सेना ने गोवा पर आक्रमण किया. पुर्तगालियों ने लड़ाई करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना से हार गए. पुर्तगाली भारत के गवर्नर ने भारत में 450 वर्षों के पुर्तगाली शासन के बाद गोवा को आजाद कराने के लिए 19 दिसंबर सन 1961 को समर्पण के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.
- भारत की संप्रभुता को सालाज़ार की सरकार ने 1970 के दशक में यानि उसके पतन तक मान्यता नहीं दी थी, जिसके बाद से भारत और पुर्तगाल के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण हो गए थे.
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