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इस बैठक के परिणामस्वरुप वायसराय और ब्रिटिश भारत के प्रमुख राजनितिक नेता भारत के स्व-शासन के लिए एक संभावित समझौते पर पहुंच पाए. इस सम्मलेन ने मुसलमानों के लिए अलग प्रतिनिधित्व प्रदान किया और उनके बहुसंख्यक क्षेत्रों में दोनों समुदायों के लिए बहुमत की शक्तियों को कम कर दिया. लॉर्ड वेवेल ने आधिकारिक तौर पर 25 जून 1945 को शिमला सम्मेलन की शुरुआत की थी. अबुल कलाम आजाद उस समय कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने शुरुआत में कांग्रेस का चरित्र "गैर-सांप्रदायिक" होने की बात कही थी. जिन्ना कांग्रेस के मुख्यतः हिंदू चरित्र के होने की बात कहते थे. उस समय अलग-अलग सोच के कारण एक रस्साकशी जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी जिसे वेवेल के हस्तक्षेप से सुलझाया गया था.
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जिन्ना की जिद –
29 जून की सुबह फ़िर से सम्मलेन आयोजित किया गया और वेवेल ने पार्टियों से अपनी नई परिषद् के लिए उम्मीदवारों की सूची प्रस्तुत करने के लिए कहा, आज़ाद ने सहमती व्यक्त की जबकि जिन्ना ने मुस्लिम लीग की कार्य समिति से परामर्श करने से पहले सूची प्रस्तुत करने से इनकार कर दिया. जिन्ना ने सम्मेलन के दौरान यह शर्त रखी थी कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् में नियुक्त होने वाले सभी मुस्लिम सदस्यों का चयन मुस्लिम लीग स्वयं करेगी. जिन्ना ने कहा कि वेवेल मुस्लिम लीग के मंच से सभी मुस्लिम सदस्यों के नामांकन से सम्बंधित आश्वासन देने में विफल रहे, इसलिए वह सूची प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हैं.
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वाइसराय ने नए परिषद् सदस्यों की अपनी एक सूची बनायीं और लियोपोल्ड अमेरी (भारत के राज्य सचिव) को दिया. चार (लियाकत अली खान, ख्वाजा नज़ीमुद्दीन, चौधरी खालिकुज्ज़मन और इसाक साईत) मुस्लिम लीग के सदस्य बनने वाले थे और दूसरे नॉन-लीग मुस्लिम (मुहम्मद नवाज़ खान). पाँच हिन्दू जाति जवाहरलाल नेहरु, वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, माधव श्रीहरी और बी.एन.राव थे. तारा सिंह सिक्खों का प्रतिनिधित्व करने वाले थे और बी.आर. अम्बेडकर अछूतों का. जॉन मथाई एकलौते क्रिस्टियन थे. वायसराय और कमांडर-इन-चीफ को मिलाकर कुल संख्या सोलह हो गयी थी. अमेरी ने वेवेल से कहा कि वह जिन्ना से बात करें और इस सूची से सम्बंधित परामर्श ले लें. जब वेवेल ने जिन्ना से बात की और उनसे मुस्लिम नामों के बारे में पूछा तो उन्होंने तबतक लीग के किसी भी सदस्य को सरकार का हिस्सा बनने की अनुमति देने से इनकार कर दिया जबतक कि मुस्लिम लीग का भारत के मुसलमानों का एकमात्र प्रतिनिधि होना स्वीकार नहीं कर लिया जाता.
वेवेल को इस माँग की पूर्ती हो पाना असंभव लगा इसलिए आधे घंटे बाद हीं उन्होंने गाँधी जी को अपनी विफलता के बारे में जानकारी दी. इस प्रकार वेवेल योजना जिसे कि बाद में शिमला सम्मलेन कहा गया, बुरी तरह से विफल रही थी.
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