अभी हाल में पिछले हफ्ते जम्मू-कश्मीर स्थित बाबा बर्फानी धाम के पास पहाड़ों पर भीषण वर्षा हुई थी, जिससे सैकड़ों तीर्थयात्री अथाह जल की चपेट में आ गए थे. मौसम विभाग के मुताबिक यह बादल फटने की घटना थी. जैसा कि हम जानते हैं कि अमरनाथ कश्मीर घाटी में अवस्थित है. दुर्गम रास्ते की वजह से यह यात्रा थोड़े समय के लिए हीं खुलती है. आम तौर पर अमरनाथ के दर्शन जून और जुलाई के महीने में शुरू होते हैं और यात्रा का समापन अगस्त के महीने में होता है. वैसे मौसम के हिसाब से यात्रा का शेड्यूल चेंज होते रहता है. इस बार यह यात्रा 11 अगस्त तक चलने वाली है. कश्मीर घाटी में अमरनाथ गुफा 12,800 फीट की ऊंचाई पर है. कश्मीर के पहलगाम और सोनमर्ग से होकर इसका रास्ता जाता है. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं
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किसे कहते हैं बादल फटना
जब आसमान से एक घंटे में 100 मिलीमीटर (mm) से अधिक पानी जमीन पर गिरता है तो उसे बादल फटना कहते हैं. माना जाता है कि अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में जब बादल अपने साथ बहुत सा पानी लेकर जाता है और एक हीं बार में एक हीं जगह पर जब वह सारा पानी बरस जाता है तो इस अनियन्त्रित बारिश या अनियन्त्रित स्थिति को बदल फटना कहते हैं. ऐसा केवल ऊँचाई वाले स्थानों में होता है. कम ऊँचे स्थानों या मैदानों में इस प्रकार की घटना कम होती है या नहीं होती है.
क्या मौसम विभाग लगा सकता है पता ?
हाँ, मौसम विभाग लगा सकता है पता. पर घटना किस समय अचानक से हो जाएगी इसका पता मौसम विभाग भी नहीं लगा पाता. हालाँकि इस बार भी मौसम विभाग ने इसका पता लगा लिया था. परन्तु जिस दिन मौसम विभाग ने इसकी घोषणा की उस दिन यह घटना नहीं घट कर उसके अगले दिन घटी.
क्या हैं बादल फटने या क्लाउड बर्स्ट के कारण
बादल फटना या क्लाउड बर्स्ट बारिश का एक चरम रूप या एक्सट्रीम फॉर्म है होता है. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जब बादल अपने साथ बड़ी मात्रा में पानी लेकर आसमान में चलते हैं और उनके रास्ते में किसी प्रकार की कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक से फट पड़ते हैं. ये तो ठीक है कि पानी भरे बादल के रास्ते में बाधा आने पर वह फट जाता है पर आखिर वह कौन सी बाधा है जिसके कारण बादल अचानक से फट पड़ते हैं ? वह बाधा है हिमालय पर्वत. जीहाँ, मौसमविज्ञानियों का कहना है कि देश में हर साल मॉनसून के समय पानी से भरे हुए बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं और उत्तर में अवस्थित हिमालय पर्वत उनके सामने एक बड़े अवरोधक के रूप में आता है.यही कारण है कि बादल फटने की अधिकतर घटनाएँ ऊँचे पहाड़ी इलाकों में हीं होती हैं. इसके अलावा पानी से भरे हुए इन बादलों को यदि गर्म हवा का झोंका छू भी जाए, तो उनके फट पड़ने की आशंका बन जाती है. (मुंबई में 26 जुलाई 2005 को यही हुआ था, जब बादल गर्म हवा से टकरा कर फट गए थे.) ऐसा होने पर पानी इतनी तेज रफ्तार से गिरता है कि बादल के ठीक नीचे के एक हीं सीमित स्थान की जमीन पर कई लाख लीटर पानी एक साथ गिर पड़ता है जिस कारण उस विशेष क्षेत्र में एक तरह से जल प्रलय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
अचानक वर्षा से धरती भी नहीं सोख पाती पानी
बादल फटने पर बादलों का पूरा का पूरा पानी एक साथ धरती पर गिर पड़ता है. बादल फटने के कारण होने वाली वर्षा 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है. यानि कुछ ही मिनटों में 2 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा. इस एकाएक और वेग के साथ होने वाली भीषण वर्षा में धरती उस पानी को बून्द भर भी नहीं सोख पाती है दूसरे अधिकतर पानी गिरने जितने वेग से हीं ओले भी गिरने लगते हैं. और पानी तेजी से निचले इलाकों की ओर बहना शुरू कर देता है, जिससे वहाँ बाढ़ से भी भयानक स्थिति पैदा हो जाती है.
कौन से बादल फटते हैं ?
- बादल कई तरह के होते हैं. आकृति और पृथ्वी से ऊंचाई के आधार पर इन्हें कई वर्गों में बांटा गया है.
- पहले वर्ग में आते हैं लो क्लाउड्स, यानी जो पृथ्वी से ज्यादा नजदीक होते हैं. ये पृथ्वी से करीबन ढाई किलोमीटर की ऊंचाई पर होते हैं. ये भूरे रंग के, कपास के ढेर जैसे क्यूमुलस, या काले रंग के गरजने वाले, या भूरे-काले रंग के रुई जैसे या स्ट्रेट या भूरे-सफेद रंग के बादल होते हैं.
- बादलों का दूसरा वर्ग मध्य ऊंचाई वाले बादलों का होता है. धरती से ढाई से साढे़ चार किलोमीटर की ऊंचाई वाले इस वर्ग में दो तरह के बादल होते हैं आल्टोस्ट्राटस और आल्टोक्युमुलस.
- तीसरा वर्ग है धरती से साढ़े चार किलोमीटर से ज्यादा उच्च मेघों का. इस वर्ग में सफेद रंग के छोटे-छोटे बादल, लहरदार साइरोक्युमुलस और पारदर्शक रेशेयुक्त साइरोस्ट्राटस बादल आते हैं.
- बादल फटने की घटना के लिए क्युमुलोनिंबस बादल जिम्मेदार हैं. इन खूबसूरत बादलों में जब अचानक नमी पहुंचनी बंद हो जाती है या इनमें कोई हवा का झोका प्रवेश कर जाता है, तो ये सफेद बादल गहरे काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं और तेजी से गरजते हुए अचानक से बरस पड़ते हैं.
- पिछले हफ्ते अमरनाथ यात्रा के रास्ते में बदल फटने से 17 लोगों की जान चली गयी.